top of page
Writer's pictureAjay Kanwar

आइये जानें, छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक व्यंजन मुरई और खीरा रोटी के बारे में

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


आदिवासी अपने वेशभूषा, रहन-सहन और भाषा सहित, खाने के लिए भी विशेष पहचान रखते हैं। इसलिए तो, आदिवासी लोगों की खान-पान सबसे अलग होती है। सभी जानते हैं कि, छत्तीसगढ़ में अनेकों प्रकार की रोटियां बनाईं जाती है। जो खाने में बहुत ही अच्छे होते हैं। इन्हीं में से एक मुरई (मूली) रोटी है। जिसे आदिवासी बहुत अच्छे से बना कर खाते हैं। आप सभी, मुरई की सब्जी और पराठा के बारे में सुने ही होंगे। लेकिन, आदिवासी इसकी रोटियां भी बनाते हैं। ठीक इसी तरह से ही खीरा की भी रोटी बनाई जाती है। इसके साथ ही खीरा की बड़ी भी बनाई जाती है। जिसके बारे में, आज मैं आप को बताने वाला हूं।

मूली रोटी बनाने के लिए तैयार सामग्री

मूली की रोटी, बहुत ही चटपटा और स्वादिष्ट लगता है। इस रोटी को बनाने के लिए, कुछ अन्य सामग्रीयों की जरूरत भी पड़ती है। इस रोटी को बनाने के लिए, मूली को अच्छे से धो कर, कोरनी की मदद से, पतला-पतला कर लिया जाता है। इसकी पत्तियों को, इसमें नहीं डाला जाता है। सिर्फ कंद का ही उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही इसमें, चावल के आटे को भी, आवश्यकता अनुसार लिया जाता है। और टमाटर को भून कर, चटनी पीस लिया जाता है। उसके बाद, इस चटनी को चावल के आटे और मूली करी को मिलाकर, गीला किया जाता है। फिर तवे में इसे पकाया जाता है। जब यह अच्छे से पक जाता है। तो, इसे टुकड़ा-टुकड़ा करके खाते हैं। वैसे तो मूली को, कई तरह से उपयोग करते हैं। जैसे कि, इसकी सब्जी बनाई जाती है और मूली की बड़ी भी बनाई जाती है। जो बहुत अच्छा लगता है। मूली-बड़ी को राखिया-बड़ी की तरह ही बनाया जाता है। जिसमें, उन्हें उड़द दाल की आवश्यकता पड़ती है।

तवे में पकती मूली रोटी

कुछ आदिवासी, खीरा की भी रोटी बना कर खाते हैं। जो बहुत से लोगों को पता नहीं होगा। इस रोटी को बनाने के लिए, खीरा के छिलके को निकाल कर, मूली की तरह ही कोरनी में कोर करके, चावल के आटे के साथ मिलाकर बनाते हैं। वैसे तो, खीरा की रोटी बहुत कम बनाई जाती है। चूँकि, इस रोटी को हर कोई नहीं बनाते हैं।


ग्राम पंचायत छुरी-खुर्द के, ग्राम झोरा के, अशोक बाई का कहना है कि, वे मूली की रोटी खूब बनाती हैं। क्योंकि, यह रोटी ठंडी के मौसम में, बहुत स्वादिष्ट लगती है। इसके साथ ही गांव के बहुत लोगों को, इस रोटी को बनाने के लिए बताई हूँ। और बहुत सी महिलाएं तो, आज भी बनाने के लिए बोलती हैं। जिनको यह रोटी बहुत ज्यादा पसंद है। जांजगीर चांपा क्षेत्र के आदिवासी, सुबह के समय, खेतों में काम करने के लिए जल्दी ही निकल जाते हैं। तो इसी रोटी को ही बना कर खाते हैं। इस क्षेत्र के आदिवासी, खीरा की रोटी को भी बहुत ज्यादा पसंद करते हैं। वे कहती हैं कि, मैं लगभग उस क्षेत्र में, 10 साल तक रही हूँ। इसलिए, इन रोटियों के बारे में जानती हूँ, नहीं तो मुझे भी इन रोटियों के बारे, पता नहीं था।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

Comments


bottom of page