मनोज कुजूर द्वारा संपादित
आइए हम आपको छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध नर नारायण मेला से अवगत कराते हैं, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 230 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में घने जंगलों से घिरा हुआ सुंदर हरियालीयों के बीच में स्थित है पखांजूर, जो की महाराष्ट्र बॉर्डर से लगी हुई है। और इस क्षेत्र में आदिवासीयों के साथ-साथ बंगाली लोग भी रहते हैं।
पखांजूर में आयोजित इस मेला को नर नारायण मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर्व के साथ से शुरू हो जाती है । परंपरा के अनुसार पखांजूर में स्थित नर नारायण मंदिर में भगवान श्री विष्णु जी की पूजा के पश्चात यह मेला प्रारंभ हो जाती है।यह मेला नर नारायण सेवा आश्रम समिति द्वारा आयोजित किया जाता है। यह मेला लगभग 15 दिनों तक चलती है। जिसमें कई राज्यों के व्यापारी अथवा व्यापारी समूह व्यापार के लिए आते हैं और व्यापार करते हैं। इस मेले में भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्तुएं देखने को मिलती हैं। सभी राज्यों के व्यापारी अपने-अपने राज्यों के वस्तुओं का प्रदर्शन करते हैं। रात - दिन के इस मेले में भीड़ भी अत्यधिक मात्रा में होती है। यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा मेला है, जो 15 दिनों तक चलती है।
मेले के मुख्य द्वार के सामने से ही दुकानें सजे मिल जाएंगे। मेले को बहुत ही बेहतरीन तरीके से सजाए जाते हैं । मुख्य द्वार के बाद स्वामी नर नारायण जी का बड़ा ही मनमोहक मंदिर मिलता है। जिसकी पूजा के बाद आप मेले का आनंद ले सकते हैं। मंदिर के परिसर में ही मेले का आयोजन होता है। जो बहुत बड़े क्षेत्र में फैली होती है। आपको यहां विभिन्न प्रकार के वस्तु बहुत ही सस्ते दामों में मिल जाते हैं। इसलिए लोग यहां अपने मनपसंद वस्तुओं की खरीद बड़े शौक से करते हैं, जो प्राय: बाजारों में नहीं मिल पाते, वे वस्तुएं एक स्थान पर सुलभ उपलब्ध होते हैं। इन्हीं वजहों से लोग दूसरे राज्यों के साथ-साथ सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लोग भी उत्सुकता के साथ मेले में शरीक होना पसंद करते हैं।
इस मेले में बाहरी राज्यों से आए व्यापारियों को तो लाभ होता ही है, किंतु छत्तीसगढ़ के स्थानीय व्यापारियों को भी अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। साथ ही साथ स्थानीय आदिवासी लोग भी अपने हाथों से बने घरेलू उत्पादों को बेचने के लिए ले जाते हैं। इस मेले में एक अनोखी चीज देखने को यह मिली है कि इस क्षेत्र के आदिवासी लोग मेले में अपने घरेलू पशुओं को बेचने ले जाते हैं।
चित्र में आप देख सकते हैं किस प्रकार आदिवासी अपने-अपने बकरियों को मेला में लाकर रखते हैं और वहां उपस्थित खरीदार मोलभाव कर बकरा बकरी खरीदते हैं इस क्षेत्र के आदिवासी अहले सुबह ही बकरा बकरियों को लेकर मेले परिसर में पहुंच जाते हैं और बकरा बकरियों की खरीद बिक्री दोपहर से पहले ही खत्म हो जाती है ताकि दूसरे पहर वे अपनी आवश्यक वस्तुओं की खरीद तथा मेले का आनंद उठा सकें।
बकरा खरीदने के लिए यह मेला बहुत ही प्रसिद्ध है यहां कम दामों में बकरा मिल जाता है तथा यहां बकरा बकरी खरीदने के लिए एक स्थान को निर्धारित कर दिया जाता है ताकि लोगों को ढूंढने की जरूरत ना पड़े और आसानी से लोगों को उपलब्ध हो जाए।
यह मेला व्यापारियों के साथ-साथ क्षेत्र के आदिवासियों को लाभ तो पहुंचाती ही है साथ ही साथ सुनहरा अवसर तथा एक अच्छा बाजार भी उपलब्ध कराता है जहां अधिक मात्रा में खरीददार भी मौजूद होते हैं। इन दिनों यह क्षेत्र त्योहार के समान गुलजार माहौल में रहता है आदिवासी लोग मेले को एक त्यौहार के रूप में मनाते हैं उनका मानना है कि मेला सिर्फ लोगों के लिए ही नहीं होता वे लोग अपनी देवी देवताओं को याद कर उनकी भी पूजा अर्चना करते हैं तथा फूल नारियल अर्पित करते हैं यह कार्य प्रायः सभी घरों में किया जाता है। पखांजूर का नर नारायण मेला पिछले 3 सालों तक कोविड-19 की वजह से बंद रहा मेले का आयोजन तो नहीं हो सका परंतु मंदिर में स्वामी नर नारायण की पूजा करी जाती थी बस मेले का आयोजन स्थगित थी। पुनः जनवरी 2023 में मकर संक्रांति के अवसर पर मेले का आयोजन भव्य तरीके से किया गया जिससे इस क्षेत्र के साथ-साथ आस-पड़ोस के राज्यों के लोगों में हर्षोल्लास के साथ मेले में सम्मिलित होने की खुशी उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मेले का यह नजारा बड़ा ही अद्भुत एवं मनमोहक दिखाई पड़ रहा था।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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