एलपीजी कनेक्शन मिलने के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे ईंधन का प्रयोग करने को मज़बूर हैं लोग
- Tara Sorthey
- Oct 8, 2021
- 3 min read
इस 21वीं सदी में हर तरफ़ तकनीकी का बोलबाला है। आज दुनिया तेज़ी से डिजिटलीकरण की ओर बढ़ रही है, इसी क्रम में अब हर देश औधीगीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या और फैलते औधीगीकरण के कारण जंगल के जंगल काट लिए जा रहे हैं। जंगलों को हमारे पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है, पेड़-पौधे हवा को लगातार शुद्ध करते रहते हैं।
भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गई है, एक शोध के अनुसार विश्व के 30 प्रदूषित शहरों में से 20 भारत में हैं और प्रत्येक वर्ष जहरीली हवा के कारण लगभग 10 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। भारत में प्रदूषण का मुख्य कारण फैक्टरियों और गाड़ियों से निकलने वाली जहरीली गैस है, परंतु जलावन में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ियाँ और कोयले से निकली धुएँ भी वायु प्रदुषण का एक कारण हैं।
भारत एक विकासशील देश है, ज्यादातर आबादी गाँवों तथा जंगलों में निवास करती है, और अब तक कोयले तथा लकड़ी को ही चूल्हे जलाने के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। कच्चे ईंधन जैसे कि कोयला, लकड़ी, गोबर आदि को चूल्हे में जलाने से धुआं निकलता है जो हमारे वातावरण को प्रदूषित करता है। गाँवों में कच्चे ईंधन का इंतेजाम करना भी बहुत मुश्किल का कार्य है, महिलाओं को चूल्हा जलाने के लिए अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इन्हीं समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 1 मई 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की गई, इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे रह रहे महिलाओं को मुफ़्त में गैस कनेक्शन देना शुरू कर दिया गया, ताक़ि महिलाओं को कच्चे ईंधन से चूल्हा न जलाना पड़े। इस योजना के तहत अब तक करोड़ों परिवार में गैस कनेक्शन दिया जा चुका है।

उज्ज्वला गैस कनेक्शन के ज्यादतर लाभार्थी अत्यंत ही ग़रीब हैं, दो वक्त के खाने के लिए भी उन्हें अनेक संघर्ष करना पड़ता है। गैस कनेक्शन तो उन्हें मिल गया परंतु वे दोबारा से पैसा देकर गैस भराने की हिम्मत नहीं कर पाते। एक शोध के अनुसार उज्ज्वला योजना के लाभर्थियों में से सिर्फ़ 68% लोग ही गैस का उपयोग कर रहे हैं, बाक़ी 38% वापस से कच्चे ईंधन से ही अपना चूल्हा जला रहे हैं।
गाँव के लोगों से जब इस विषय पर बातचीत की गई तो उन्होंने हमें गैस से खाना नहीं बनाने के कई कारण बताएं
अधिकतर लोगों का कहना था कि रिफिल की कीमत बहुत अधिक होने के कारण वे बहुत कम ही गैस का इस्तेमाल करते हैं।
कुछ लोगों ने बताया कि जितना खर्च करके गैस से खाना बनता है उससे कहीं कम खर्च में लकड़ी आदि से खाना बन जाता है, इसीलिए गैस का कम ही इस्तेमाल करते हैं।
आदिवासी क्षेत्रों में लोग प्रकृति पर ही निर्भर रहते हैं, जंगलों में जाकर वे कई महीनों की लकड़ी एक साथ ले आते हैं और उसी से उनका चूल्हा जलता है। लकड़ी का चूल्हा जलाने से बरसात तथा ठंड में इन्हें अपने चूल्हे के पास गर्मी मिलती है, इन्हीं कारणों से भी वे गैस में खाना नहीं बनाते।
ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार ऐसे हैं जहाँ एक घर मे 14 से 15 सदस्य रहते हैं, ऐसे में इतने लोगों का खाना गैस पर बनाना सम्भव नहीं होता। जबकि लकड़ी द्वारा आसानी से खाना बन जाता है।

कई गाँव शहरों से बहुत दूर हैं, अतः रिफिल स्टेशन तक गैस सिलिंडर को लाने में बहुत मशक्क़त करनी पड़ती है, यही वजह है कि वे दोबारा गैस भरवाने जाते ही नहीं हैं।
सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे समस्याओं को चिन्हित कर उनका उचित समाधान निकालें। उज्ज्वला योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी के बारे में लोगों के बीच जागरूकता फैलाना बहुत ज़रूरी है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog samaj sevi sanstha और Misereor का सहयोग है l
Comments