इस साल गर्मी के मौसम में लोग बहुत हलाकान हुए हैं, लेकिन जैसे ही आषाढ़ लगा है बारिश ने अपना असर दिखा दिया है। आषाढ़ की पहली बरसात में ही पानी जम कर बरसा है जिससे लोगो को गर्मी से छुटकारा मिला है। खेत तालाबों की तरह भर चुके हैं, आषाढ़ की पहली बरसात होते ही गाँव के लोग अपने-अपने कृषि कार्यों में व्यस्त हो गए हैं।
छत्तीसगढ़ में मानसून 6 जून से आने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन छत्तीशगढ़ के कोरबा जिले में 15 जून को मानसून पहुँचा है। जिससे लोगो को गर्मी से बड़ी राहत मिली है नौतपा के पहले और नौतपा के बाद एक दो दिन तक लोगों को इस भीषण गर्मी में बहुत परेशानी हुई है, लोग पानी गिरने का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे जिससे कि उन्हें गर्मी से थोड़ी राहत मिल सके लेकिन धूप कभी कम नही हुआ, बल्कि लोग नौतपा से डर रहे थे कि अगर नौतपा लगा तो परेशानी और बढ़ेगी लेकिन ऐसा नही हुआ नौतपा में बदली रहने के कारण किसी को ज्यादा परेशानी नही हुई है। नौतपा के कुछ दिनों तक बदली और हल्की धूप बनी हुई थी लेकिन जैसे ही आषाढ़ का महीना लगा है तो पहले दिन से ही मानसून ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। 15 जून की सुबह बादल ज़रूर थे और दोपहर में धूप भी खिला था पर जैसे ही शाम हुआ आंधी-तूफान और गरज चमक के साथ पानी गिरना शुरू हो गया और पानी भी इतना गिरा की जमीन की गर्मी भी शांत हो गयी है। इस साल की यह सबसे ज्यादा पानी है इस साल की गर्मी से घर भी पूरी तरह से गर्म हो गए थे, हल्की बारिश से उमस ज्यादा परेशान करती थी अब तो घर भी ठंडा हो चुका है।
आषाढ़ की पहली बारिश से अब गाँव के लोगों का काम पूरी तरह से बढ़ गया है, कोई खेतों के काम में व्यस्त हैं तो कोई खपरैल घर को मरम्मत करने में लगे हैं, जिनके खेतों के मेड़ टूट फुट गए हैं वे उसको ठीक कर रहे हैं तो कोई घुरवा से गोबर खाद को खेतों में डलवा रहे हैं, और जो लोग ये सब करवा लिए हैं वो तो खेत की जुताई करवा कर धान बोना शुरू कर रहे हैं। सबसे ज्यादा काम तो उनका रहता है जो बैल से खेती करते हैं क्योंकि वे जब नए-नए बैल खरीद कर लाते हैं तो उन्हें जुताई के लिए सिखाना पड़ता है, बाज़ार से खरीद कर उससे सीधे जुताई नहीं कर सकते हैं। बैलों को हर साल लोग बदलते रहते है जिससे बैल सिखाने में बहुत समय लग जाता है और बैलों के लिए हल का भी जुगाड़ करना पड़ता है क्योंकि हल तो हर साल टूटते रहते हैं।
आषाढ़ में कोरबा जिले के झोरा और सिरकी गाँव सहित हसदेव नदी के किनारे बसे अनेकों गाँव के लोगों को पहली बारिश होने का इंतजार हर साल रहता है, यहाँ के लोग शुरुआत की बारिश में बहुत मछली पकड़ते हैं इसलिए आषाढ़ के पहले से ही अपने-अपने जाल तैयार करने लगते हैं। शुरुआत की बारिश में बहुत गंदा पानी आता है जिससे मछलियों को पकड़ना बहुत आसान हो जाता है।
ग्राम पंचायत छुरी खुर्द के आश्रित ग्राम झोरा के प्रहलाद सिंह का कहना है कि "इस अचानक बारिश होने से गर्मी से थोड़ी राहत जरूर मिली है लेकिन इसके साथ ही काम भी पूरी तरह से बढ़ गया है क्योंकि अभी जलाने के लिए लकड़ी इक्कठा भी नही कर पाएं है। खेती के समय जब मज़दूरों से काम करवाते है तो उनके लिए भी खाना बनाते हैं जिससे इतने लोगों के लिए गैस सिलेंडर में खाना बनाना मुश्किल हो जाता है साथ ही ठंड के दिनों में भी लकड़ी की ज़रूरत पड़ती है क्योंकि यह गाँव नदी किनारे होने के कारण अत्यधिक ठंड पड़ती है इसलिए आग जलाकर ठंड से बचते हैं। साथ ही अत्यधिक गर्मी के कारण अकरस जुताई भी नहीं कर पाए हैं, गर्मी के वजह से ज़मीन पूरी तरह से सुख गए थे जिसमें हल तो क्या ट्रैक्टर से भी जुताई करना मुश्किल हो गया है, इस तरह से अनेकों काम एक साथ आ गए हैं जिससे काम अत्यधिक बढ़ गए हैं।"
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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