छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राज्य के प्रत्येक पंचायत में गौठान का निर्माण कराया जा रहा है जिससे गांव के लोगों को रोजगार मिल सके और आवारा घूम रहे पशूओं को गौठान में रखा जा सके। अक्सर आवारा पशु या तो खेतों को नुकसान पहुंचा देते हैं या फ़िर सड़कों में रहकर दुर्घटना का कारण बनते हैं।
गौठनों में मौजूद पशुओं के गोबर को जैविक खाद में परिवर्तित कर ज़मीन की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाया जा सकता है, एवं सरकार की तो यह भी योजना है कि गौठनों के गोबर से बिजली बनाया जाए। प्रत्येक पंचायत में गौठान बनवाया गया है। गौठनों में गोबर सिर्फ़ वहाँ के पशुओं से ही नहीं आता बल्कि गाँव वालों से भी गोबर खरीदा जाता है, और इसका भुगतान ऑनलाइन किया जाता है। लॉकडाउन के दौरान अनेकों लोगों को इसका लाभ मिला है।
गौठान रोजगार का भी एक अच्छा जरिया बन गए हैं, कई गौठनों में सब्जी उत्पादन, मुर्गीपालन आदि भी किया जा रहा है। गौठनों के जरिये आजीविका को बढ़ावा देने के लिए महिला स्वंय सहायता समूहों द्वारा विभिन्न आर्थिक गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है।
ग्राम पंचायत बांझीबन के गाँव सिरकी कला निवासी कंचन बाई कंवर ने बताया कि वे सिरकी कला के गौठान में अपने समूह के साथ जैविक खाद बनाने का काम करती है। उनके समूह में 10 सदस्य हैं एवं इसका नाम 'महामाया स्व सहायता समूह' है। उन्होंने 2020-2021 से खाद बनाने का काम शुरू किया है। ग्रामीणों से 2 रुपये किलो में गिला गोबर खरीदा जाता है, और दो सप्ताह के अंदर ग्रामीणों को उनका पैसा मिल जाता है।
इस वर्ष में 500 किउंटल गिला गोबर खरीदा गया। गीले गोबर को 15 से 20 दिनों तक सुखाया जाता है, सुखाने के पश्चात उस खाद को वर्मी टाका टैंक में डाल दिया जाता है, एक टैंक में लगभग 500 किलो गोबर डाला जा सकता है, इसके पश्चात इसमें केंचुए का बीज डाला जाता है। यदि कभी गोबर ज्यादा सुख जाता है तो सीमित मात्रा में पानी का छिड़काव किया जाता है ताकि उसमें नमी आ जाये। केंचुए इस गोबर को खाद के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। यह खाद लगभग 40-50 दिनों में पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाता है। उसके पश्चात समूह के महिलाओं द्वारा उस खाद का छनाई किया जाता है, छानने के पश्चात उसे हल्का सुखाया जाता है और फ़िर उसे बोरीयों में भरा जाता है। एक बोरी में 30 किलो खाद होता है। सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद खरीदने वालों को सूचित कर दिया जाता है, एवं 300 रुपये प्रति बोरी की दर से इस खाद को बेचा जाता है। अब तक 50 क्विंटल से भी अधिक का खाद बनाया जा चुका है, इस वर्मी खाद को वन विभाग के अधिकारी भी खरीद कर ले जाते हैं।
इसी तरह से ग्राम झोरा के गौठान में भी गोबर से खाद बनाने का काम किया जा रहा है। वहाँ की महिलाओं ने बताया कि यह कार्य अच्छा तो है परंतु बहुत सारी असुविधाओं का भी सामना करना पड़ रहा है, माँग के अनुसार खाद का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। केंचुआ के बीज भी कम मिलने के कारण जल्दी खाद बन नहीं पा रहा है।
सरकार द्वारा पूरे छत्तीसगढ़ के सभी पंचायतों में गौठान का निर्माण कर वर्मी खाद का अधिक से अधिक उपयोग करने को कहा जा रहा है, रासायनिक खादों का कम से कम उपयोग हो जिससे मिट्टी की उर्वरता लगातार बनी रहे।
गाँव में गाय जब तक दूध देती रहती है तब तक तो उसकी ज़रूरत पड़ती है, बाकी समय छोड़ दिया जाता है। वही हाल बैलों का भी है, इन जानवरों का उपयोग बस चंद समय के लिए होता है परंतु गौठनों के निर्माण से इन्हीं जानवरों की उपयोगिता बढ़ गई है। सही से देख-रेख हो एवं असुविधाओं को दूर किया जाए तो गौठान गाँव वालों के लिए बहुत ही अच्छी पहल बन सकती है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l
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