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Rakesh Nagdeo

जातिय मिलान:- अंतरजातीय विवाह के कारण समाज से निकाले गए व्यक्ति को वापिस शामिल किया जाता है

हमारा भारत देश जनजाति समूह का देश माना जाता है, यहाँ सात सौ से भी ज्यादा जनजातियाँ रहती हैं। भले ही देश आधुनिकीकरण की ओर तेज़ी से बढ़ रहा हो परंतु आदिवासी समुदाय अभी भी उनके अनोखे रीति रिवाज को कायम रखे हुए हैं। हर राज्य में अलग-अलग जनजातियों के समूह अपनी-अपनी संस्कृति को बचाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। आदिवासियों की संस्कृति ही सबकुछ होती है वे इसे अपने आप में संजो कर रखना चाहते हैं। ऐसी अनेक परम्पराएं हैं जो आदिवासियों को दूसरों से अलग करती है।


इन्हीं में से एक परंपरा है 'जातिय मिलान', छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में गोंड़, कंवर, मांझी, पंडो, धनवार, कुम्हार, रावत जैसे अलग-अलग जनजाति के लोग रहते हैं। कई गॉंवों में एक से अधिक जनजाति के लोग एक साथ ही निवास करते हैं। जब अलग-अलग जनजाति के लोग साथ में रहते हैं तब बहुत संभावना होती है की वहाँ के युवक-युवती आपस में प्रेम कर बैठें। जनजातियों में अपने से दूसरे जनजाति में विवाह करने की परंपरा नहीं रही है। अक्सर युवक-युवती भागकर ही शादी करते हैं, और भागकर के शादी करने पर समाज उन्हें स्वीकार नहीं करता है, उन्हें अपने समाज से 15-20 वर्षों तक अलग रहना पड़ता है। समाज के परम्पराओं में शामिल होने और लोगों से मिलने जुलने में मनाही रहती है। इन प्रेमी जोड़ों को ही समाज में शामिल कराने के लिए 'जातिय मिलान' कराया जाता है। पुरखों द्वारा बताया गया यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।

सबके सामने माफ़ी माँगकर समाज में मिला लेने की विनती करता युवक।

कोरबा जिले के संतोष कुमार जी के अनुसार लोग अपने-अपने इच्छानुसार भागकर शादी तो कर लेते हैं, लेकिन आगे चलकर उन्हें जीवन में समाज की ज़रूरत महसूस होती है तब वे वापिस समाज में मिलना चाहते हैं। लड़का पक्ष से यह विनती की जाती है कि पुरानी गलतियों को माफ़ कर उन्हें फ़िर से समाज में मिला लिया जाए। समाज के बड़े-बुजुर्गों से सलाह-मशविरा करने के बाद अगर वे सहमत होते हैं तो एक दिन निर्धारित कर उस दिन समाज के सभी लोगों को अपने घर बुलाना होता है। वहीं पर सभी लोगों के सामने सार्वजनिक रूप से भी निर्णय लेकर समाज में शामिल कर लिया जाता है। समाज में शामिल होने के लिए लड़के को यथासंभव आर्थिक दण्ड भी देना पड़ता है एवं सभा में शामिल समाज के सभी लोगों को भोजन कराना पड़ता है।


आदिवासी हमेशा से सामुदायिक जीवन जीते हैं, इसी सामुदायिकता को बचाए रखने के लिए वे ऐसे अनेक परंपराओं का पालन करते आए हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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