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किस पौधे के छाल से बनती है रस्सी? जानिए इसका उपयोग

Rakesh Nagdeo

छत्तीसगढ़ एक जनजातीय प्रदेश है, इसके ज्यादातर भू-भाग में अलग-अलग आदिवासी जनजाति रहते हैं। यहाँ के आदिवासी जंगलों में रहते हैं और खेती बाड़ी करके तथा जंगल के उत्पादों से अपना जीवनयापन करते हैं। रोज़मर्रा के जीवन में उपयोग होने वाले अनेक चीज़ें यहाँ के आदिवासी स्वयं से बना लेते हैं। उन्हीं में से एक वस्तु है रस्सी, रस्सी का उपयोग अनेकों कृषि संबंधी कार्यों में होता है।


आदिवासियों की चहिरदिवारी कंक्रीट की नहीं होती, वे छोटे बड़े पौधों के डालियों से अपने बाड़ी (बगान) को घेरते हैं, इन डालियों को आपस में बाँधने के लिए जो रस्सी का इस्तेमाल होता है, उसे ये लोग अपने हाथों से बनाते हैं। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में धान की खेती बहुत जोरों से हिती है, धान को काट लेने के बाद उसे खलिहानों तक लाने की बड़ी चुनौती रहती है। धान के पौधे से निकले पराली का उपयोग यहाँ के लोग अपने गाय बैलों के आहार के रूप में करते हैं। अतः धान के साथ उसके पराली को सही सलामत खलिहानों तक लाने के लिए रस्सी की आवश्यकता होती है, और यहाँ भी ये लोग स्वनिर्मित रस्सी का प्रयोग करते हैं।

'ऐंठी' का पौधा

ग्रामीण आदिवासियों को यह जानकारी रहती है कि किस पेड़ की छाल या झाड़ी के छाल से रस्सी बनाया जा सकता है, छत्तीसगढ़ में एक ऐसे ही जंगली पौधे का इस्तेमाल रस्सी बनाने के लिए किया जाता है, उसे 'ऐंठी' या 'बिछली' का पेड़ कहते हैं। हर हर वर्ष जंगलों में तेंदू पत्ते के चलते आग लगा दी जाती है। और यह पेड़ भी उस आग में जल जाता है। जब बरसात का मौसम आता है तब फ़िर से अनेक पौधे अपने आप उग जाते हैं। जब ये आठ-दस फीट तक बढ़ जाते हैं, तब उन्हें जंगलों से काटकर गठ्ठे के रूप में लाया जाता है, फिर बीच से दो भागों में अलग कर उसके छिलके को निकाला जाता है। और यही छिलके को रस्सी का रूप दिया जाता है। इस रस्सी का उपयोग कृषि में तथा अनेक घरेलू कार्यों में किया जाता है। इसी रस्सी के उपयोग से ग्रामीण अपने घर में बने लकड़ी से बने छज्जे का मरम्मत भी करते हैं।

पौधे से छाल अलग करता ग्रामीण

कृषक श्यामलाल जी बताते हैं कि "इस रस्सी का उपयोग एक नहीं बल्कि अनेकों बार किया जा सकता है। ये बहुत ही टिकाऊ होते हैं, प्रयोग में लाने के बाद अगर संभाल कर रख दिया जाए तो फ़िर सालों तक इनका प्रयोग किया जा सकता है। यदि सालों बाद इन्हें पानी में थोड़ी देर तक डूबा के रख दिया जाए तो ये और भी मज़बूत हो जाते हैं।"


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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