top of page
Adivasi lives matter logo

पानी, खेती और सशक्तिकरण की मिसाल: समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट की कहानी

  • Writer: Jyoti
    Jyoti
  • Dec 31, 2024
  • 5 min read

छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और सूखा प्रभावित पहाड़ी इलाकों में जब आप कदम रखते हैं, तो वहां की मिट्टी की दरारें और लोगों के चेहरे की चिंताएं एक गहरी कहानी सुनाती हैं। यह कहानी सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि अस्तित्व, आजीविका और गरिमा की भी है। इन्हीं कठिनाइयों के बीच समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट ने आदिवासी समुदायों के लिए एक नई राह दिखाई है। यह ट्रस्ट सिर्फ पानी बचाने की मुहिम नहीं, बल्कि जीवन संवारने का एक आंदोलन बन चुका है।


मैंने छत्तीसगढ़ के कई गांवों में सूखे की मार झेलते हुए किसानों को देखा है। उनकी फटी बंजर जमीन और निराश आंखें उस दर्द को बयान करती हैं, जो पानी के अभाव ने उनके जीवन में भर दिया है। लेकिन जब मैंने समर्थ ट्रस्ट के प्रयासों को करीब से देखा, तो यह महसूस हुआ कि पानी केवल एक संसाधन नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत की नींव है।

छत्तीसगढ़ के सूखा प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में, पानी की कमी और आजीविका का संकट एक बड़ी चुनौती है। ऐसी परिस्थिति में समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट आदिवासी समुदायों के लिए एक नई उम्मीद बनकर सामने आया है। 2005 से सक्रिय यह ट्रस्ट जल संरक्षण, खेती की बेहतरी, और सामाजिक सशक्तिकरण के माध्यम से इन क्षेत्रों में व्यापक बदलाव ला रहा है।


छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में जल संकट खेती के लिए एक बड़ी बाधा है। मैंने खुद ऐसे गांव देखे हैं, जहां किसान बारिश के भरोसे रहते हैं और सूखे की स्थिति में उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं। समर्थ ट्रस्ट ने इन चुनौतियों को समझते हुए जल संरक्षण के लिए 500 से अधिक संरचनाएं बनाई हैं।


इन संरचनाओं ने न केवल भूमिगत जलस्तर को बढ़ाया, बल्कि 5000+ हेक्टेयर जमीन को खेती योग्य भी बनाया। अब इन इलाकों में किसान दो या तीन फसलें उगा पा रहे हैं, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो रही है।


समर्थ केवल जल संरक्षण तक सीमित नहीं है। यह आदिवासी किसानों को आधुनिक खेती के तरीकों से भी जोड़ता है। सामुदायिक खेती के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित किया जाता है कि वे कम पानी में बेहतर उत्पादन कैसे कर सकते हैं।


इन परियोजनाओं में सामुदायिक भागीदारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मैंने एक गांव में देखा, जहां महिलाएं और पुरुष मिलकर जल संरक्षण का काम कर रहे थे। यह न केवल खेती में सुधार लाता है, बल्कि समुदाय को आत्मनिर्भर बनाता है।


जल संरक्षण के साथ-साथ समर्थ आदिवासी और हाशिये पर खड़े समुदायों के सशक्तिकरण के लिए भी काम करता है। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और कौशल विकास के जरिए यह ट्रस्ट लोगों को उनके अधिकार दिलाने में मदद करता है।


समर्थ ट्रस्ट का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसने समुदायों को खुद अपने विकास का जिम्मेदार बनाया है। पानी बचाने और खेती में सुधार के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित किया जाता है। यह समुदाय-आधारित दृष्टिकोण स्थायी विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।


मैंने कवर्धा जिले के एक गांव में किसानों से बातचीत की, जहां समर्थ के प्रयासों ने पूरी तस्वीर बदल दी। वहां की महिलाएं अब खुद खेती में हिस्सा लेती हैं, युवा पानी बचाने के अभियान में सक्रिय हैं, और बच्चे स्कूल जा रहे हैं। यह बदलाव बताता है कि सही दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी से कितनी बड़ी समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।


समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट का काम यह साबित करता है कि अगर संसाधन और सही मार्गदर्शन मिले, तो आदिवासी समुदाय न केवल समस्याओं से उबर सकते हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं। यह केवल एक संगठन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का एक बड़ा हिस्सा है।


समर्थ ने जल संरक्षण के लिए 500 से अधिक संरचनाएं बनाई हैं—चेक डैम, छोटे तालाब, और कुएं, जो बारिश की हर बूंद को सहेजते हैं। इन प्रयासों ने न केवल जमीन का जलस्तर बढ़ाया, बल्कि 5000 हेक्टेयर से अधिक जमीन को खेती योग्य बना दिया। अब वहां के किसान सिर्फ एक फसल पर निर्भर नहीं, बल्कि रबी और खरीफ दोनों फसलें उगा रहे हैं।


लेकिन समर्थ का काम केवल पानी तक सीमित नहीं है। यह संगठन आदिवासी किसानों को आधुनिक और टिकाऊ खेती के तरीकों से जोड़ रहा है। मैंने एक गांव में महिलाओं के एक समूह से बातचीत की, जो सामुदायिक खेती कर रही थीं। ये महिलाएं न केवल खेती सीख रही थीं, बल्कि अपनी उपज को बाजार तक पहुंचाने में भी सक्षम हो रही थीं।


सामुदायिक खेती के इस मॉडल ने गांवों में एक नई ऊर्जा भर दी है। अब हर खेत में हरियाली है, और हर किसान के चेहरे पर एक आत्मविश्वास।


छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज में महिलाओं की स्थिति हमेशा से कठिन रही है। पानी और चूल्हे-चौके तक सीमित इन महिलाओं को समर्थ ने एक नई पहचान दी है। जल संरक्षण के काम में उनकी भागीदारी ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया, बल्कि उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया।


मैंने सरिता नाम की एक महिला से बात की, जो पहले सिर्फ घरेलू कामकाज करती थी। समर्थ के प्रशिक्षण के बाद वह अब गांव की सबसे सक्रिय जल संरक्षण कार्यकर्ता बन गई है। उसने बताया, "पानी बचाने का मतलब सिर्फ फसल उगाना नहीं है, यह हमारे बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना है।"


पानी की समस्या केवल खेती तक सीमित नहीं होती, इसका असर स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। समर्थ ने पीने के पानी के साथ-साथ स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवाओं की भी व्यवस्था की है। गांवों में स्वास्थ्य शिविर लगाए जाते हैं, जहां बच्चों और महिलाओं की खासतौर पर देखभाल होती है।


साथ ही, शिक्षा के जरिए बच्चों को बेहतर भविष्य की ओर बढ़ाया जा रहा है। समर्थ की कोशिशों का असर अब हर गांव के स्कूल में दिखाई देता है।


समर्थ का सबसे बड़ा योगदान यह है कि उसने समस्याओं का हल समुदाय के भीतर से ढूंढा है। हर जल संरचना, हर खेती का मॉडल, और हर परियोजना ग्रामीणों की भागीदारी से पूरी होती है। यह केवल एक संगठन का प्रयास नहीं है, बल्कि गांव-गांव की कहानियों का संगम है।

एक गांव में मैंने रामलाल से मुलाकात की, जो पहले रोज़गार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करता था। अब वह अपनी जमीन पर सब्जियों की खेती कर रहा है। उसकी पत्नी ने बताया, "पहले हम सोचते थे, हमारा गांव हमें कभी नहीं पाल सकता। लेकिन अब हमें अपने गांव और खुद पर गर्व है।"


समर्थ चैरिटेबल ट्रस्ट की यात्रा एक प्रेरणा है। यह बताता है कि अगर समस्याओं का हल स्थानीय स्तर पर ढूंढा जाए और समुदाय को विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाए, तो बदलाव संभव है।


यह कहानी सिर्फ छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों की नहीं, बल्कि उन सभी जगहों की है, जहां लोग पानी और अवसरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। समर्थ ने साबित किया है कि अगर हर बूंद को सहेजा जाए, तो हर सपने को सींचा जा सकता है।


पानी, खेती और सशक्तिकरण—समर्थ ने इन तीनों को जोड़कर एक नई उम्मीद की धारा बहाई है, जो पूरे छत्तीसगढ़ के लिए एक मिसाल है।


लेखक परिचय: छत्तीसगढ़ की ज्योति आदिवासी मुद्दों, महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक परिवर्तन पर लिखती हैं।

Comments


bottom of page