कोरोना महामारी सभी के लिए कठिन रही है। महीनों से हम शारीरिक-दूरी का पालन कर रहे हैं और संक्रमण के डर के साथ जी रहे हैं। आज जब धीरे-धीरे स्कूल और कॉलेज फिर से खुल रहे हैं और सामान्य स्थिति की एक झलक लौटनी शुरू हो गई है, क्या हम अब कोरोना वायरस के बारे में मजाक कर सकते हैं?
इसी सोच से आदिवासी बच्चों ने भोपाल के एक स्कूल में एक नाटक प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने बढ़-चढ़कर कोरोना के ऊपर व्यंग किया।
इस नाटक में बच्चों ने बड़े उत्साह से भाग लिया और अपने साथियों को खूब हँसाया। डर के माहौल में हँसना उतना ही मुश्किल है जितना डर के साथ रहना इसीलिए बच्चों ने अपने नाटक के द्वारा कोरोना के डर के भारी माहौल को हल्का-फुल्का करके दिखाया और लोगों को हँसाया।
यह नाटक ‘मुस्कान’ नाम की संस्था द्वारा किया गया था। यह संस्था पिछले 21 सालों से भोपाल शहर के आदिवासी एवं दलित परिवारों के साथ सामाजिक और आर्थिक शिक्षा के माध्यम से काम कर रही है।
यह संस्था एक हॉस्टल चलाती है जिसमें विभिन्न जातियों के बच्चे रहते हैं और पढ़ाई करते हैं। संस्था में शहर के आदिवासी बच्चे और अन्य कई समुदाय के बच्चे रहते हैं, पढ़ते हैं और आज़ादी के साथ अपनी प्रतिभाओं को प्रस्तुत करते हैं।
कोरोना बिमारी से फैले डर के माहौल को हल्का करने के लिए इन आदिवासी बच्चों ने नाटक में कोरोना का खूब मज़ाक उड़ाया और लोगों को हँसायाl जिस बिमारी के डर से लम्बे समय से लोग घबराए हुए हैं, उसपर हँस कर इन बच्चों ने अपने और अपने साथियों के साथ एक ताकत भरा खुशनुमा माहौल एकदूसरे के साथ बांटाl बच्चों ने बड़ी बखूबी से अपनी प्रस्तुति दी।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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