हम सभी जानते हैं की भारत देश गांव का देश है l यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार यहाँ चारों ऋतूएं समान रूप से पाई जाती हैं। भारत में पश्चिमी मानसून से वर्षा ऋतु का आगमन होता है जो हिमालय पर्वत से टकराकर भारी वर्षा करती है l यहां पर शरद ऋतु, बसंत ऋतु ग्रीष्म ऋतु ,वर्षा ऋतु सभी तीन से चार माह का समय लेती है। इन ऋतुओं में वर्षा ऋतु छत्तीसगढ़ के आदिवासी किसान भाइयों के लिए वरदान साबित होता है। अच्छी बारिश से ही लोग धान की खेती कर पाते हैं।
लेकिन जहां बारिश जीवन देती है, वहीं यह आदिवासियों के मिट्टी के घरों को नष्ट करने की भी शक्ति रखती है। इसलिए मानसून के आने से पूर्व जैसे पशु पक्षियों द्वारा अपना-अपना घोंसला बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है, ठीक उसी प्रकार से आदिवासी समुदाय के लोग मई-जून के महीनों में अपना घोंसला अर्थात छानी छप्पर के पुनर्निर्माण का कार्य शुरू कर देते हैं l यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण है और हर साल इसको किया जाता है ताकि वे परिवार के सदस्यों तथा संपत्ति को बारिश से बचा सकें।
आइए मिलते हैं छत्तीसगढ़ कोरबा जिला के वनांचल क्षेत्र में निवास करने वाले आदिवासी समुदाय के छत्तराम अगरिया जी से।
श्री छत्तराम अगरिया जी (४९ साल ) आदिवासी समुदाय से है जो वनांचल क्षेत्र में रहते हैं l इनसे बात करने पर हमें पता चला की वर्षा ऋतु आने के पूर्व यह काम उनके लिए क्यों महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने बताया की साल भर में मुख्य रूप से तीन रितु आती है जिसमें कुल 12 माह होता है l जो इस प्रकार क्रमश : माघ,फाल्गुन ,चैत्र, वैशाख, जेष्ठ ,आषाढ़ ,सावन ,भादो , कुंवार, कार्तिक,अगहन , पौष्ण, होता है l जिसमें वर्षा ऋतु के आगमन होने के पूर्व हमको अपने घर द्वार मकानों के छप्परों को साल में एक बार पलटाना अर्थात पुनर्निर्माण करना जरूरी होता है। छप्पर को बनाने के लिए कांड ,कढेली ,बांस , खापरा को बदलना अनिवार्य होता है क्योंकि साल भर के हवा तूफानों द्वारा छप्पर अस्त -व्यस्त हो जाता है जिससे वर्षा होने के पूर्व ही ग्रीष्म ऋतु के अंतिम माह में पूरा कर लिया जाता हैl छप्पर पलटने का कार्य हर आदिवासी को करना होता है l
लकड़ी से बना सांचा के माध्यम से आदिवासी समुदाय के लोग खपरे अर्थात् मिट्टी से बना छपर का निर्माण करते है l इसे बनाने के लिए 3 से 4 डिवाइस (सामग्री ) की जरूरत पड़ती है जैसे —खपरे आकार का लकड़ी से बना सांचा, मिट्टी को काटने के लिए छोटा धनुष, एक छोटा पीढ़ा (छोटा टेबल) — इन सभी सामग्रियों के माध्यम से खपरे को बनाया जाता है l 1 हजार से 5 हजार तक खपरे को बनाने और पकाने के लिए एक माह का समय लगता है l तब जाके छपर पूर्ण रूप से तैयार हो पाता है जिसे हम छान्ही (छप्पर) में ढकने के लिए उपयोग में लाते हैं, और जिसे छप्पर के नाम से जाना जाता है l
आदिवासियों का घर कच्चा होता है इसलिए छप्पर पलटने का कार्य बहुत महर्वपूर्ण होता है l अक्सर दूरदराज वनों पहाड़ों पर निवास कर रहे आदिवासी समुदायों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है फिर भी वह चुपचाप सारे दुख दर्द को सहन करते हैं अतः हम आप सभी को उनके रहने के स्थानों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे उनके रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार आ सके l
यह लेख Adiwasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है और जिसमें Prayog Samaj Sevi Santha और Misereor का सहयोग है
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