नितेश कु. महतो द्वारा सम्पादित
भारत अन्य देशों की तुलना में बहुत ही अलग है। यहां की रहन-सहन, वेश-भूषा, खानपान, अलग है। हमारे देश में भिन्न-भिन्न प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं। यहां एक गांव से दूसरे गांव में जाते ही बोली में परिवर्तन आ जाता है। यहां प्रत्येक राज्य में अलग-अलग जातियां पाई जाती हैं। कई जातियों की तो उप जातियां भी होती हैं।
इस लेख में हम जानेंगे छत्तीसगढ़ में निवासरत चेरवा जनजाति के बारे में।
एक बुजुर्ग चेरवा बलवान सिंह ने हमें बताया कि, कोरबा जिले के चेरवा, सरगुजा और कोरिया जिले से भागकर यहां बसे हैं। उनका कहना है कि, पहले पहाडों के बीच जब वे रहते थे तो बहुत ही गरीबी, अशिक्षा और भुखमरी छाई हुई थी। राजाओं के द्वारा बिना मूल्य के काम करवाये जाते थे ,सिर्फ खाने को दिया जाता था। फसलों में भी एक तिहाई हिस्सा राजा के हिस्से में चला जाता था। घर का पालन पोषण दूभर हो गया था। सिर्फ राजाओं की ही मनमानी चलती थी। कई बार तो ऐसी भी स्थिति आयी जब सिर्फ धान के कुटे हुए छिलके को महुआ के फूल के साथ खाकर गुजारा करना पड़ा।
इतनी गरीबी झेलने के बाद कुछ लोगों ने वहां से पलायन करने का विचार किया, और भागते भागते जंगलों की तरफ से आ गए, कुछ छोटे-छोटे मैदानी क्षेत्र देखकर वहीं रुक गए, और आज स्थाई रूप से सभी यहीं बस गए हैं।
कोरबा जिले में कटघोरा, पेंड्रा रोड - पंडरीपानी, सगुना, भाटापारा, तुमान, धंवईटिकरा, खोडरी, बड़े खोडरी, कटोरी नागोई, बिलासपुर रोड में -आंछीदादर, चैतमा, पाली, राहाडीह, बगदेवा, सेमरकछार, जांजगीर जिले में तथा शक्ति में भी चेरवा जनजाति के लोग निवास करते हैं।
कोरबा जिले के चेरवा समाज के लोग हर वर्ष एक बैठकी करते हैं। हर वर्ष अलग-अलग गांव में सभा की जाती है, जिसमें आसपास के जितने भी चेरवा जनजाति के लोग रहते हैं, सभी को निमंत्रण दिया जाता है। साथ में 1 किलो चावल, और 50 रुपये लाने को कहा जाता है, जिसकी अगुवाई अध्यक्ष श्री बनाफर सिंह जी करते हैं। उपाध्यक्षता गुलाब सिंह चेरवा के द्वारा किया गया था। इस समाज को एकत्रित करने का मूल उद्देश्य यह रहता है कि समाज के लोग किस दिशा में जा रहे हैं, इस पर विवेचना करना। और उनके द्वारा बनाए हुए नियम कानून के आधार पर लोग चल रहे हैं कि नहीं, यह भी देखा जाता है। इसमें कई लोग अपनी फरियाद या समस्या लेकर भी आते हैं I
समाज में इस तरह के कुछ नियम बनाये गए हैं - शराब का सेवन न करना, किसी दूसरे जनजाति के व्यक्ति साथ शादी नहीं करना (अगर ऐसा होता है तो समाज से बहिष्कृत किया जा सकता है)। सामाजिक नियमों को तोड़ने वाले को जुर्माना लेकर दंडित भी किया जाता है।
सभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष, इन सभी का चुनाव 5 वर्षों में एक बार होता है और इनकी जिम्मेदारी रहती है कि पूरे समाज को बांध के रखे, ताकि अपने पूर्वजों से चली आ रही परंपराओं, रीति-रिवाजों को टूटने ना दिया जाए। यह मानते हैं कि "हम आदिवासी हैं, और आदिवासी ही हमारी पहचान है"। इसीलिए बाहरी चमक-दमक से ये अपने को थोड़ा दूर रखते हैं।
चेरवा जनजाति के इस महासभा में निम्न कुछ मुद्दों पर चर्चा हुई: -
एक शादीशुदा दंपति एक दूसरे से अलग होना चाहते हैं। वे दोनों एक दूसरे के साथ खुश नहीं है, लड़के का कहना है, कि उसकी पत्नी का किसी और पुरुष के साथ नाजायज संबंध है। हालांकि सभा ने उनको अपने रिश्ते सुधारने का एक मौका देना चाहा, परंतु वे दोनों एक दूसरे से अलग रहने के ज़िद्द पर अड़े रहे। इसके बाद सभा ने उन्हें कोर्ट के माध्यम से अलग हो जाने का सलाह दिया।
एक व्यक्ति दूसरी जनजाति की लड़की से शादी कर चुके हैं, और समाज ने इनको बहिष्कृत कर दिया था। पर इनका आग्रह था कि दोबारा से समाज में शामिल कर लिया जाए। सभा ने फैसला लिया कि पुरुष से 5 लाख रुपया दंडस्वरूप लेकर शामिल कर लिया जाए। इससे समाज में यह संदेश भी जाएगा कि दूसरे जनजाति के लोगों से विवाह नहीं करना है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l
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