छत्तीसगढ़ के ज्यादातर आदिवासी जंगलों तथा पहाड़ों में निवास करते हैं। ये आदिवासी ज्यादातर वनों में पाए जाने वाले वस्तुओं से कमाकर अपने जीवन को चलाते हैं, जैसे- चांहर, आँवला, तेंदू पत्ता, महुआ, साल, हर्रा आदि।
कोविड -19 के दौरान हुए लॉकडाउन की वजह से इनका जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है, हाट बाज़ार के न खुलने से इनका कमाई बंद हो गया जिससे स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है।
वही स्थिति शिक्षा की भी है, एक तो बहुतों के पास मोबाइल, लैपटॉप जैसे उपकरण नहीं हैं, ऊपर से गाँव तथा जंगलों में नेटवर्क भी नहीं मिलता, इन्हीं वजह से ऑनलाइन होने वाले क्लासेस में आदिवासी छात्र शामिल नहीं हो पा रहे, परिणामस्वरूप वे अन्य बच्चों की तुलना में पिछड़ते जा रहे हैं।
विजय नगर निवासी, कक्षा 6 के अंगेश्वर भुंजिया कहते हैं, "मेरे पास मोबाइल नहीं होने के कारण मैं ऑनलाइन क्लास नहीं जॉइन कर पाता, आसपास में मेरा कोई क्लासमेट भी नहीं होने की वजह से मेरी पढ़ाई अच्छे से नहीं हो पा रही है।"
जिनके पास मोबाइल है और नेटवर्क भी ठीक है, उन्हें भी अनेक तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मोबाइल के बारे में सही जानकारी न होने की वजह से बच्चे क्लासेस में ठीक से जुड़ नहीं पाते, और जो मोबाइल चलाना सीख जा रहे हैं वे पढ़ाई में कम और गेम्स आदि चीज़ों में अपना वक़्त बर्बाद कर रहे हैं।
शिक्षा के सही साधन नहीं मिल पाने और घरवालों के भी कम पढ़े लिखे होने के कारण आदिवासी बच्चों का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है।
बच्चों के साथ-साथ विजय नगर के युवाओं को भी इस लॉकडाउन में काफ़ी परेशानीयों से गुजरना पड़ रहा है। जो लोग मज़दूरी करके अपने जीवन यापन चलाते थे, लॉकडाउन के चलते वे घर में बैठे हैं।
60 वर्षीय श्रीमती - सगनी बाई कहती हैं, "कोविड-19 के वैक्सीन लगने के वजह से मैं लगभग 15-20 दिनों तक बुखार से ग्रसित रही, जिससे हमारा सब काम काज ठप पड़ा रहा। मैं अपने बेटे के साथ वनों में मिलने वाले वस्तु, जैसे - लाह, चांहर, महुआ आदि बीनकर मार्केट में बेचती थी, और इसी से हमारे घर का ख़र्च निकलता था। लॉकडाउन में सबकुछ बंद हो जाने की वजह से घर का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है, इस कोविड-19 के लॉकडाउन में हम लोग पूरी तरह कर्ज़ों से लद चुके हैं।"
श्री परस राम ने बताया कि, "लॉकडाउन के चलते गाँव में किसी प्रकार का काम नहीं मिलने से लोगों को बहुत ज्यादा समस्याएँ हो रही हैं।"
श्री गाडाराय जी कहते हैं, "हम लोग सब्जी बेचकर अपना गृहस्थी चलाते हैं, लॉकडाउन की वजह से हमारा सब्जी बेचना भी मुश्किल हो गया। कई दफ़े तो बाड़ी में लगा सब्जी, बाड़ी में ही रहकर ख़राब हो गया। रोजगार बन्द होने से घर का खर्च निकलना मुश्किल हो गया है, अब तो दो वक़्त की रोटी कहाँ से मिलेगी इसकी चिंता लगी रहती है।"
ऐसे ही रोजगार नहीं ऊपर से महंगाई की मार!
इस कोविड-19 की वजह से किराना दुकानों में हर सामग्री की रेट बढ़ा दी गई है,10₹ के वस्तु को 20₹ में बेची जा रही है। इस स्थिति में ग़रीब आदिवासी मज़दूरों को बहुत ही ज्यादा तकलीफ़ों का सामना करना पड़ रहा है। गाडाराय जी का कहना है कि, "सरकार को खाद्य सामग्री की रेट कम कर देनी चाहिए। जिससे ग़रीब मज़दूर, किसान सब लोग आसानी से खाद्य सामग्री खरीद सकेंगे। ऐसे ही आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय है ऊपर से इतनी महंगाई होगी तो जीना मुश्किल हो जाएगा।"
गाड़ाराय जी के द्वारा यह भी बताया गया कि, वह एक दुकानदार से 5000₹ का कर्ज़ लेकर अपने घर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ उनके आय के स्रोत भी पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। अब कर्ज़ चुकाने की भी चिंता उन्हें सताने लगी है।
इसी तरह अन्य लोग भी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज़ का सहारा लेने को मज़बूर हो जा रहे हैं। ऐसे में लोगों की माँग है कि, कम से कम ब्याज दरों में कमी की जाए।
रोजगार न मिलने से वर्तमान अंधकारमय हो गया है, और बच्चों को शिक्षा न मिलने से भविष्य। पहले से ही अभावों से ग्रसित आदिवासियों के जीवन को यह कोरोना काल ने और भी अधिक दयनीय स्थिति में ला दिया है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अन्तर्गत लिखा गया है जिसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है l
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