माता जतमई से सम्बंधित एक बहुत दिलचस्प कहानी है। प्राचीन समय में माता जतमई एक साधारण महिला की तरह रहती थीं और यह बात एक गांव में रहने वाले सिर्फ एक बुजुर्ग को पता थी। वे गाय, बैल, भैंस, बकरी आदि चराते थे। जब भी वे मवेशी चराने जाते तो साथ में दो लोगों का खाना ले कर जाते थे। एक दिन उनकी पत्नी सोचने लगी कि दो लोगों का खाना लेकर एकइंसान क्या करता होगा? यह सोचते हुए उनकी पत्नी एक दिन उनके पीछे-पीछे चली गई। जब दोपहर में खाने का समय हुआ तो गाय चराने वाला माता रानी जतमई को खाना खिला रहा था। जिसे देखकर पत्नी को शंका हो गया और वह देवी को गाली-गलौज देने लगी। उसी समय माता मूर्ति के रूप में आ गईं। इस तरह से माता जतमई की उत्पत्ति हुई।
मंदिर का निर्माण- अभी वर्तमान काल में जतमई माता के बहुत ही भव्य मंदिर का निर्माण जय मां सेवा समिति द्वारा किया गया है। मंदिर का निर्माण सिर्फ भक्तों के द्वारा दिये गये दान राशि आदि से ही हुआ है। यह समिति अभी भी जय मां सेवा समिति के नाम से जाना जाता है। पूर्व से अब तक आदिवासी रीति-रिवाज के अनुसार माता रानी की पूजा बलि देकर की जाती है। इससे पहले भी यहाँ पर माता रानी को बकरी की बलि दी जाती थी। यहाँ माता रानी की पूजा आदिवासी विधि से की जाती है। इसके अलावा अन्य वर्ग के लोग भी माता रानी की पूजा में शामिल होते हैं। पहले यहाँ काला, सफेद और लाल रंग के मिठाई सजाई जाती थी। चैत्र माह के नवरात्रि के बाद पूर्णिमा को जतमई जात्रा मनाया जाता है। उस दिन बकरी और मुर्गी की बलि दी जाती है। यह परंपरा आज भी आसपास के गाँवों में प्रचलित है।
मंदिर के नीचे कुंड का निर्माण- पुराने रीति-रिवाजों के अनुसार यह माना जाता है कि कुंड के नीचे में एक घड़ा था। उसमें एक बहुत बड़ा अजगर साँप का निवास था। वह रोज दो से तीन गायों को खा जाता था। जब गाय चराने वाले ने माता जतमई को यह समाचार सुनाया तो उन्होंने अपने बेटे बरदेव बाबा को उस साँप को मारने के लिए भेज दिया। साँप वहाँ से भागने लगा और उस जगह पर प्रसिद्ध विशाल कुंड का निर्माण हो गया।
कन्हैया ध्रुव माता जतमई मंदिर के पुजारी हैं। ये एक आदिवासी हैं। पहले कन्हैया ध्रुव किसान थे और किसानी कर के अपने परिवार के साथ जीवन यापन करते थे। वे ग्राम साकरा में निवास करते हैं। यह गाँव गरियाबंद जिले के छुरा ब्लॉक में है। इनका कहना है कि यहाँ मंदिर में आने से उनके जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। अब मंदिर से इन्हें कुछ राशि और दान प्राप्त हो जाता है जिससे ये अपना घर अच्छे से चला लेते हैं।
इनका नाम डेहरा ध्रुव है। ये भी ग्राम साकरा में निवास करते हैं। इनका कहना है कि पहले उनकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी। जब से माता रानी जतमई के मंदिर के सामने उन लोगों ने अपना व्यापार शुरू किया है तब से इनके जीवन में बहुत बदलाव आया है। इनके घर में आज सारी सुविधा उपलब्ध है। ये भी एक आदिवासी हैं और इनके जीवन शैली में कई बदलाव आए हैं।
वर्षा ऋतु का आगमन और सुंदर प्राकृतिक परिवेश- मां जतमई चारों तरफ घने जंगलों के बीच में स्थापित है। यहाँ का प्राकृतिक परिवेश सबका मन मोह लेता है। लेकिन वर्षा ऋतु के आगमन पर यह दृश्य और भी सुंदर दिखाई देती है। यहाँ एक सुन्दर सा झरना तेज बहाव के साथ माता रानी के चरणों से होकर नीचे कुंड में प्रवाहित हो रही है। इस कारण यह विशाल माता जतमई मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। आप भी यहाँ आकर आनंद ले सकते हैं। इस मंदिर के आस-पास के गांव में आदिवासी लोग रहते हैं।
यह आलेख आदिवासी आवाज़ प्रोजेक्ट के अंतर्गत मिजेरियोर और प्रयोग समाज सेवी संस्था के सहयोग से तैयार किया गया है।
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