आज हम आप लोगों को बताएँगे कि हमारे छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले को छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी क्यों कहा जाता है। इसके पीछे कुछ खास वजहें हैं जिसे आप आगे पढ़ेंगे।
मनुष्य हो या मशीन, सभी को कार्य करने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। मनुष्य या जीव-जन्तु भोजन से ऊर्जा प्राप्त करते हैं। मशीन को चलाने के लिये ऊर्जा के कई स्रोतों का उपयोग किया जाता है, जैसे खदानों से प्राप्त होने वाले कोयले से बड़े-बड़े कल-कारखाने चलाये जाते हैं। आज कल कोयले का सबसे अधिक उपयोग बिजली उत्पादन में किया जाता है। कोयले को जला कर इसकी ताप शक्ति से बिजली पैदा की जाती है। वर्तमान में हमारा छत्तीसगढ़ बिजली उत्पादन से मामले में एक खुशहाल राज्य है। हमारे राज्य की खुशहाली का प्रमुख आधार है हमारा औद्योगिक तीर्थ 'कोरबा'।कोरबा को छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी भी कहते है।
छत्तीसगढ़ के उत्तर-पूर्व में वन एवं आदिवासियों से भरा-पूरा जिला है कोरबा। इस जिले का मुख्यालय है कोरबा नगर। यह एक विशाल औद्योगिक नगर है। इस नगर में बिजली बनाने का बहुत बड़ा विद्युत् गृह है। यह पावर हाउस देश में सबसे बड़ा है। इसे भारत सरकार के राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम द्वारा बनाया गया है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल का भी अपना पावर हाउस है। दोनों पावर हाउसों में बिजली पैदा करने के लिये कोयले का उपयोग किया जाता है। इनमें कोयले को जलाकर उसके ताप से पानी की भाप बनाई जाती है। भाप से मशीन चलाकर बिजली बनाई जाती है। इसलिये इन्हें ताप विद्युत गृह कहते हैं। पावर हाउस में बिजली पैदा करने के लिये बहुत ज्यादा खनिज कोयले की आवश्यकता होती है। कोयला भी अच्छी किस्म का होना चाहिये। कोरबा एवं इसके आस पास के क्षेत्र में अच्छे कोयले का पर्याप्त भंडार भूमि के अंदर है। भूमि के अंदर से कोयला निकालने का काम करने वाली कई कोयला खदान यहाँ हैं। इनमें कोरबा, कुसमुंडा ,गेवरा ,दीपका, बांकी मोंगरा आदि प्रमुख परियोजनाएँ हैं। इन खदानों से भारी मात्रा में कोयला निकाला जाता है। यहाँ से निकाला गया कोयला, मालगाड़ियों एवं ट्रकों से देश के दूसरे भागो में भी भेजा जाता है।
पावर हाउस में कोयले के साथ पानी की भी बहुत जरूरत होती है। पानी की कमी न हो, इसके लिये कोरबा दर्री में हसदो नदी पर एक बांध बनाया गया है, जिसे दर्री बांध के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त कोरबा से कुछ ही दूरी पर हसदो नदी पर एक और विशाल बांध बनाया गया है। जिसे मिनी माता बांगो बांध कहा जाता है। दर्री बांध में पानी कम होने पर बांगो बांध से पानी दिया जाता है। बांगो बांध में जल विद्युत की भी तीन इकाइयाँ है। प्रत्येक में चालीस मेगा वाट बिजली पैदा होती है। यहाँ पर बांध से गिरते हुए पानी की ताकत से मशीन चलाकर बिजली पैदा की जाती है।
कोरबा में एल्युमिनियम धातु बनाने का भी एक बड़ा कारखाना है। इस कारखाने में बॉक्सइट नामक खनिज का शोधन कर एल्युमिनियम बनाया जाता है। एल्युमिनियम से कई तरह के, फर्नीचर, बर्तन, बिजली के तार आदि बनाये जाते हैं।
कोरबा में इनके अलावा और भी कई कल-कारखाने हैं। इन खदानों एवं कारखानों के कारण समान ढ़ोने के लिए ट्रांसपोर्ट का भी काम बहुत ज्यादा उपलब्ध रहता है। इन उद्योगों में बहुत बड़ी मात्रा में कामगर काम करते हैं। इस कारण कोरबा का नगरीय क्षेत्र भी बहुत बड़ा हो गया है। सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापार भी काफी बड़ा हो गया है। काम एवं व्यापार के लिए प्रायः देश के सभी क्षेत्रों के लोग यहाँ निवास करते हैं और आते-जाते रहते हैं।
कोरबा के ताप विद्युत गृह के कारण छत्तीसगढ़ में सभी को आवश्यकता के अनुसार बिजली मिल रही है। यही हमारी खुशहाली का कारण है। कोरबा के ताप विद्युत गृह से कई अन्य प्रदेशों को भी बिजली की पूर्ति की जाने की संभावना है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण कोरबा आज एक ऊर्जा नगरी, औद्योगिक तीर्थ बन गया है। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ की ऊर्जा नगरी के नाम से भी जाना जाता है।
हमे आज पर्याप्त बिजली मिल रही है किंतु इतना ध्यान रखें कि बिजली का दुरुपयोग न हो। जब आवश्यक न हो बिजली के बल्ब, पंखे अन्य साधनों को बंद रखें। दिन में कमरे की खिड़कियाँ खोल कर रखें ताकि कमरे में रोशनी रहे और बिजली की बचत की जा सके।
इससे होने वाली हानियाँ:
बिजली उत्पादन करने के लिये बड़े बड़े बांध बनाया जाता है और उस बांध में भारी मात्रा में पानी को एकत्रित कर रखा जाता है । बरसात के दिन में भारी वर्षा होने के कारण पानी की मात्रा बढ़ जाता है जिसके कारण बांध का पानी धारण क्षमता कम हो जाता है । बांध फूटने का डर रहता है और बांध फुट जाएगा तो उसके आस पास के गांव शहर डूब जाने का भय रहता है। कभी कभी ये दर सच होजाता है और आस पास के गांब डूब जाते हैं जिससे लोगो को काफी परेसानी होती है । इससे जन हानि होने का भी भय रहता है । बड़े बड़े कारखानों में बिजली उत्पादन करने के लिये कोयले की आवश्यकता पड़ती है और कोयले की ब्यवस्था,जमीन के अंदर खोदाई करके निकाला जाता है जिससे जमीन खोखला हो जाता है । इसके कारण जमीन अंदर धसने का डर रहता है और कभी कभी धंस भी जाता है जिससे लोगो को काफी परेशानी होती है । इसके इलावा, पावर प्लांट को बनाने के लिये काफी बड़ी जगह की जरूरत होती है जिसमे गांव के किसान और गरीब लोगों की जमीने ले ली जाती है। बहुत साड़ी ऐसी आदिवासी गाँव हैं जो इसके कारण उजड़ गयी हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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