पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
बैगा जनजाति के कस्बे अधिकतर पर्वती क्षेत्र में पाए जाते हैं। चूँकि, मैदानी क्षेत्र में बैगा जनजाति का कोई भी परिवार अपना घर बनाए हुए नहीं रहता है। बैगा जनजाति को वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार का दत्तक पुत्र कहा जाता है। क्योंकि, छत्तीसगढ़ शासन ने इनकी स्थित को देखते हुए बैगा जनजातियों को गोद लिया है। इनकी दैनिक स्थिति बाकी आदिवासियों की तुलना में बहुत ही दयनीय है।
कबीरधाम जिला के पंडरिया ब्लाक में आने वाले वनांचल क्षेत्र में बहुत से बैगा जनजातियों के परिवारों का कस्बा पाया जाता है। और पंडरिया ब्लॉक में आने वाला बैगाओं का एक ऐसा गांव है, जहां निवास करने वाले 40 बैगा परिवार पुराने समय से अपनी बेबसी से अपने मन को मारते हुए, अपने परिवार का मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं। क्योंकि, इन बैगा परिवारों के पास अपनी गरीबी को दूर हटाने के लिए कोई साधन या तकनीक नहीं है। जिसके चलते इन 40 बैगा परिवारों को वर्ष 2015-16 में राजस्व विभाग द्वारा निवास व खेती कार्य के लिए पट्टा वितरण किया गया था।
इन बैगा परिवारों को पट्टा तो दे दिया गया है। जिस पट्टा में निवास जमीन व कृषि कार्य के लिए भूमि पट्टा में लिखित रूप में राजस्व विभाग द्वारा दिया गया था। लेकिन, सात साल बीतने के बाद भी इन लोगों को पट्टे के अलावा कुछ भी नहीं मिला। जिसके चलते ये लोग अपनी समस्या को लेकर चार से पांच बार कलेक्ट्रेट कार्यालय जा चुके हैं। लेकिन, अभी तक इनके आवास, पीने का पानी, कृषि भूमि, आंगनबाड़ी, स्वास्थ केंद्र, रोज़गार आदि समस्याओं का अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है।
जिसके चलते और एक बार उम्मीद लिए 40 बैगा परिवार अपने बीवी बच्चों और बुजुर्गों के साथ मई महीने के तीसरे बुधवार को कलेक्ट्रेट कार्यालय पहुंचे और अपनी समस्याओं की गुहार कलेक्ट्रेट कार्यालय में लगायी। इनके यहाँ पीने के लिए शुद्ध पेयजल भी नहीं है, जिसके चलते यह लोग पर्वतों से निकलने वाली नाले का पानी से अपना जीवन चला रहे हैं। यह पानी दिखने में साफ भी नहीं रहता है और मजबूरन इसी पानी को यह लोग अभी तक पी रहे हैं और अपने बच्चों-बुजुर्ग को भी पिला रहे हैं। जिसके चलते इन लोगों के स्वास्थ्य में बहुत सी परेशानी भी होने लगती है। और इन लोगों के पास उनके स्वास्थ्य इलाज के लिए भी कोई साधन उपलब्ध नहीं है।
बच्चों के भविष्य को सुधारने के लिए इन लोगों के पास आंगनबाड़ी केन्द्र भी नहीं है। यह 40 बैगा परिवार अशिक्षित हैं। इसलिए, अपनी समस्याओं को दूर करने में अक्षम हैं। इन बैगा परिवारों को शासन की ओर से अभी तक दो गांव में बांटा जा चुका हैं, सोनबरसा और गोरराकोनहा। और वर्तमान में ये लोग ग्राम बदना में निवास कर रहे है। लेकिन, इन लोगों को अभी भी डर है कि, कहीं सरकार इन्हें ग्राम बदना से भी ना भगा दें।
सभी बैगा परिवार कलेक्ट्रेट कार्यालय के सामने ही बैठ गए थे कि, जब तक कोई अधिकारी उनकी समस्या का समाधान नहीं करेंगे, तब तक वे सामने से नहीं हटेंगे। क्योंकि, वो लोग 55 किलोमीटर दूर से अपनी मांग लेकर आए थे। ये लोग कबीरधाम के SDM P.C. कोरी को अपनी समस्या सुना कर, उनको अपना विज्ञापन सौंपे। इन लोगों की मांग थी कि, उनकी समस्याओं का निदान जल्द से जल्द किया जाए अन्यथा उनके जो बच्चे हैं, वे लोग भी उनके जैसे अशिक्षित और बेरोजगार रह जाएंगे। SDM सर P.C.कोरी ने उन लोगों को उम्मीद दिलाया कि, कल हम आपके गांव आएंगे और आप लोगों की जो भी समस्या है उनको जल्द से जल्द दूर किया जाएगा।
बैगा जनजाति की महिलाएं मायूस चेहरा लेकर घर को वापिस जा रहीं थी। क्योंकि, उनको यह बातें दुविधा में डाल रही थी कि, कहीं पिछले बारी की तरह इस बार भी भरोसा दिलाकर, कहीं इनके मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया तो इनकी जीवन में जो गरीबी है, उसका समाधान ही नहीं हो पाएगा। और इनको वही लाचारी की जिंदगी जीनी पड़ेगी। लेकिन, साथ ही उनको खुशी भी हो रही थी कि, कल उनके गांव उनकी मदद करने के लिए SDM सर आएंगे ।
पंडरिया ब्लाक के प्रदेश अध्यक्ष रवि चंद्रवंशी जी, जो बैगाओं की मांग को लेकर उनको अपने साथ लेकर कबीरधाम कलेक्ट्रेट कार्यालय आए थे। उनका कहना है कि, “बैगा जनजाति जो भोले और सरल स्वभाव के रहते हैं। यह लोग बहुत ही सीधे होते हैं, जंगलों से अपना गुजारा करते हैं, किसी के प्रति ईर्ष्या या द्वेष की भावना नहीं रखते हैं। यह लोग सरल रूप में अपना जीवन जीते हैं। इन लोगों की मूल समस्या निवास स्थल, स्कूल, कृषि-भूमि, रोजगार, पेयजल आदि हैं। लेकिन, इन चीजों को तो सरकार पहले से ही सभी गांव को दे चुकी है, तो आखिर क्यों इनके परिवारों को उन सुविधाओं से अभी तक दूर रखा गया है?”
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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