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Writer's pictureAjay Kanwar

पक्के घरों के बनाने के बाद भी आदिवासी अपने मिट्टी के घरों की महत्वता को भूलें नहीं हैं

Updated: Jul 13, 2022

अत्यधिक धूप से बचने के लिए लोग तरह तरह की चीज़ों का उपयोग करते रहते हैं, जैसे कि कूलर, पंखे, ऐ.सी. जिससे घर को ठंडा रखा जा सके, और इस साल तो इतनी ज्यादा गर्मी है कि कई सालों का रिकार्ड टूट चुका है।


आज कल लोग पक्की मकाने इतना ज्यादा बना रहे हैं लगता है कुछ सालों में मिट्टी वाले घर मुश्किल से मिलेंगे। लेकिन ये पक्की छत वाली घरों में गर्मी इतना ज्यादा है कि लोग गर्मी के समय ऐसे घरों में बिना पंखे के रह ही नहीं सकते। ये घर गर्मियों में बहुत ज्यादा गर्म हो जाता है, कुछ लोग ऐसे भी है जो अपने देसी जुगाड़ से घर को थोड़ा ठंडक बना के रखते है, जो कि जंगलों में उन्हें आसानी से मिल जाता है। वहीं मिट्टी के घरों में लोग बिना पंखे के रह सकते हैं, ये घर गर्मी के समय के अनुकूल रहता है।

खपरे लगे हुए मिट्टी के घर

आज कल सभी लोग यही चाहते हैं कि उनका एक सपनों का घर हो जिसमें सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध रहे, और किसी भी प्रकार की समस्या ना हो इसलिए अब शहरों के साथ-साथ गाँव में भी लोग अत्यधिक संख्या में पक्के मकान बनवा रहे हैं, पुराने मिट्टी वाले घर अब नहीं बन रहे हैं। गाँवों में मिट्टी के घर अब आपको बहुत कम देखने को मिलेंगे। परन्तु गाँव के कई लोग ऐसे हैं जो छत वाली पक्के घर से अच्छा पुराने मिट्टी के घर को मानते हैं, क्योंकि गर्मी में पक्की घरों में अत्यधिक गर्मी होती है ऐ.सी. कूलर के अलावा दूसरे पंखा काम ही नही करता है। और बहुत से ऐसे भी लोग हैं जिनके पास रहने के लिए कोई घर ही नही है ऐसे लोगो को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्की घर बना कर दिया गया है जिससे उनके परिवार अच्छे से रह सके। पक्के घरों में लगने वाली सामग्री सरिया, गिट्टी, सीमेंट, रेत आदि घर को गर्म करके रखती हैं लेकिन वहीं मिट्टी वाली घरों में मिट्टी के खपरैल और लकड़ियां लगी होती है जो जल्दी गर्म नहीं होती हैं और जल्दी ठंडा भी हो जाता है।


पक्के मकानों में गर्मी तो लगती है लेकिन उसके लिए भी गांव के आदिवासी लोग गर्मी से राहत पाने के लिए देसी जुगाड़ भी अपनाने लगे हैं। जंगलों से मिलने वाली छिंद के झाड़ को काट कर लोग अपने घरों में छत के ऊपर डाल कर रख देते है जिससे घर को ठंडा रखा जा सके।

पक्के मकान के छत पर छिंद के पत्ते रखे हुए हैं।

ग्राम डोंगरी के बबलू सिंह का कहना है कि "हमारे यहाँ दोनों प्रकार के घर हैं पक्की और कच्ची, बरसात के समय हम पक्के घर का उपयोग ज्यादा करते हैं, पक्के घरों में पानी टपकने का कोई खतरा नहीं रहता है, लेकिन गर्मी के समय पक्के घरों में अधिक गर्मी के कारण दोपहर में खपरैल वाली घर का उपयोग करते हैं, खपरैल वाली घरों में ठंडकता रहती है इस तरह से दोनों ही घर समय के साथ अच्छे हैं।"


ग्राम झोरा के बसोड़ समाज धन सिंह का कहना है कि "जब प्रधानमंत्री आवास योजना हमें नहीं दिया गया था तब बरसात के समय हमें बहुत परेशानी होती थी, पानी टपक-टपक कर पूरी तरह से घर को गिला कर देता था सोने के लिए भी जगह नहीं बचता था रात भर जागना पड़ जाता था, पैसे की कमी के कारण सीमेंट की सीट भी नहीं खरीद पाते थे लेकिन जब से यह आवास बना है हमें ऐसी कोई भी परेशानी नहीं होती है, हम बरसात में भी आराम से सो जाते हैं।"


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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