1 नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ अपने अस्तित्व में आया, आदिवासियों से भरा हुआ होने के कारण से इसे आदिवासी बाहुल्य राज्य का दर्जा मिला। छत्तीसगढ़ सरकार अपने 1 नवंबर मतलब राज्य की स्थापना दिवस को और भी यादगार बनाने के लिए पिछले तीन साल से 1 नवंबर से 3 नवंबर के बीच आदिवासी नृत्य महोत्सव का शानदार आयोजन करते आ रहा है, लेकिन इस साल अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद द्वारा इस आदिवासी नृत्य महोत्सव का विरोध किया जा रहा है। यह विरोध छत्तीसगढ़ के हर जिला में देखने को मिल रहा है, सभी जगह राज्य उत्सव एवं आदिवासी नृत्य महोत्सव का विरोध किया जा रहा है। इससे पहले जब कांग्रेस की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी के द्वारा आदिवासी नृत्य महोत्सव एवं राज्य उत्सव समारोह आयोजित होती आ रही थी जिसमें आदिवासी समुदाय पिछले दो साल तक बढ़ चढ़कर हिस्सा लिए हैं। इसमें अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद भी समर्थन करता था, लेकिन इस साल आदिवासियों का गुस्सा आदिवासी नृत्य महोत्सव पर इसलिए फूटा है क्योंकि आदिवासियों के 32% आरक्षण को घटाया गया है, एक महीने पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 19 सितंबर 2022 को 32% आरक्षण खत्म कर दिया है, इस कारण से पूरे छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय में इस का विरोद्ध देखने को मिला, जिसे सरकार यह कहा कर शांत कर दिया की वो इसको लेकर जल्द से जल्द केन्द्र सरकार से बात करेगी लेकिन आज तक सरकार द्वारा कोई भी जवाब नहीं आया है। आदिवासी विकास परिषद का कहना है कि आदिवासी समुदाय को केवल नाचने गाने के लिए याद किया जाता है, और इसको ही बढ़ावा देने की कोशिश किया जा रहा है ताकी हम अपनें नाच गान में भूले रहे और सरकार हमसे हमारा हक छीन ले, इस कारण से आदिवासी लोगों का कहना है कि आदिवासी नृत्य महोत्सव केवल आदिवासी समुदायों का ध्यान भटकाने के लिए रखा गया है ताकि वह अपने आरक्षण के लिए संगठित होने में असमर्थ रहे और अपने नाच गान में भूले रहे।
पिछले वर्ष बड़े ही शानदार तरीके से राज्य उत्सव के मौके पर तीन दिवसीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया था जिसमें छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल के बिल्कुल जमीनी स्तर के आदिवासी इस मंच पर अपना प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे थे जिसमें ग्रामीण स्तर से संकुल स्तर फिर जिला और जिला से फिर राज्य अपने आदिवासी नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। इस आदिवासी नृत्य महोत्सव में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आदिवासी मित्र अपने नृत्य को लेकर आते हैं और छत्तीसगढ़ के लोगों को उनका भी नृत्य देखने को मिलता आया है, लेकिन इस साल सरकार की आदिवासियों के आरक्षण के ऊपर लिए गए फैसले के कारण, छत्तीसगढ़ के आदिवासी, सरकार से बहुत ज्यादा नाराज दिखाई दे रहे हैं और लगातार अपने आरक्षण में हुई कटौती का विरोध प्रदर्शन करते आ रहे हैं।
बात करें गरियाबंद जिले कि तो गरियाबंद जिले के अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष श्री उमेंदी कोर्राम जी का कहना है कि जब चुनाव का समय आता है तो हमारे अपने ही आदिवासी नेता अपने आपको आदिवासियों का नेता बता कर हमसे वोट लेते हैं लेकिन जब वह चुनाव जीत जाते हैं तो वे केवल आदिवासी नेता बन के रह जाते हैं और अपने पार्टी के खिलाफ, आदिवासी हितों से संबंधित कोई भी आंदोलन में भाग नहीं लेते आए हैं। उन जैसे विधायकों, सांसदों के घर के सामने भी राज्य उत्सव के दिन विरोध प्रदर्शन करने का फैसला आदिवासी विकास परिषद जिला गरियाबंद द्वारा लिया गया। इस आरक्षण के कम होने से आदिवासियों को बहुत ज्यादा का प्रभाव पड़ेगा क्योंकि आरक्षण एक ऐसा जरिया है जिससे जमीनी स्तर के आदिवासियों को ऊपर उठने का मौका मिलता है अगर यह आरक्षण ही नहीं रहेगा तो आदिवासी आगे बढ़ने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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