कोरबा छत्तीसगढ़ के जिलों में से एक है। इसकी अधिकांश आबादी आदिवासियों की है। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान कोरबा का एक छोटा सा गाँव बेहतरीन अनुशासन की मिसाल पेश कर रहा है। इस गाँव में ग्रामीणों ने खुद से ही निर्णय लिया कि वे कोविड-19 से बचाव संबंधी सारे नियमों का पालन करेंगे। यहाँ न तो पुलिस का पराक्रम है और न ही प्रशासन की सख्ती, लेकिन दिन में यहाँ कोई सड़कों पर नहीं निकलता है। दुकाने बंद रहती हैं और सड़क सुनसान।
इस व्यवस्था के विपरीत शहरों में देखा जाए तो पुलिस प्रशासन की सख्ती के बावजूद लोग घरों से बाहर निकलते हैं। बाजार और चौक लोगों से भरे रहते हैं।
कोरबा का यह गाँव जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चुईंया में स्थित है। गाँव छोटा है और यहाँ केवल 50-55 परिवार ही रहते हैं। इस जगह को 'भटगांव' नाम से जाना जाता है। यहाँ के लोग कृषि-मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। यहाँ पर कई जनजाति के लोग रहते हैं। यह गाँव पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ है। भटगांव में फिलहाल कोरोना का एक भी मरीज नहीं है। लेकिन यहाँ के लोग लॉकडाउन का बखूबी पालन कर रहे हैं।
कोरबा जिले में 12 अप्रैल से लाकडाउन लागू किया गया था और आज भी जारी है। भटगांव के ग्रामीणों का कहना है कि इस कोरोना काल ने बहुत कुछ सीखा दिया। कोरोना ने सभी पर प्रभाव डाला है, जिसके कारण देश की आर्थिक स्थिति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। इस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए प्रशासन ने लॉकडाउन कर दिया, इसके बावजूद शहरी क्षेत्रों के लोगों ने नियमों का मखौल उड़ाया है। मगर ग्रामीण क्षेत्रों की चुनौती, संघर्ष और तस्वीरें कुछ अलग हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का काम-धंधा पूरी तरह से ठप हो गया है। क्योंकि गाँव में ज्यादातर लोग खेती-मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। जिन परिवारों के सदस्य रोज मजदूरी करके अपने घर का खर्च चलाते हैं, उन्हें बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें काम मिलना बन्द हो गया है, लोगों का बाहर आना-जाना बंद हो गया है, और गाँव में किसी भी प्रकार की चिकित्सा-सुविधा उपलब्ध नहीं है। अगर किसी की तबियत अचानक खराब हो जाती है तो तुरंत इलाज नहीं हो पाता है। लॉकडाउन के कारण व्यापारियों ने सामानों का मूल्य बढ़ा दिया है। एक प्रकार से कहा जाए तो लूटना शुरू कर दिया है।
गाँव में जितने भी शादी जैसे कार्यक्रम होने वाले थे वे सभी रुक चुके हैं। जिस प्रकार शहरों में कोरोना महामारी ने लोगों को अपना शिकार बनाया है वैसी स्थिति गाँवों में देखने को नहीं मिली है। खास कर भटगांव के ग्रामीणों से शहर वासियों को सीख लेनी चाहिए। भटगांव के सरपंच, गाँव के मुखिया और ग्रामीणों ने लॉकडाउन का सही ढंग से पालन करने का संकल्प ले लिया है। इन्होंनें ने ऐसी जागरूकता अभियान चलाया कि,लॉकडाउन लगने की खबर सुनते ही गाँव में कर्फ्यू लगा दिया गया, सरपंच, पंच व गाँव के मुखिया ने ग्रामीणों को कोरोना वायरस की जानकारी दी। इसके साथ ही गाँव में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया गया। जिले में जब से लॉकडाउन लगा है। तब से भटगांव में कर्फ्यू जैसा माहौल बना हुआ है। अपने परिवार और अपने गाँव के लोगों की सुरक्षा के लिए लोगों ने खुद को अपने-अपने घरों में लाक कर लिया है।
बाहर निकलने की छूट
गाँव के मुखिया ने बाहर निकलने की छूट भी दी है। सुबह 6 से 9 बजे तक लोग अपने जरूरी कामों को निपटाने के लिए बाहर निकलते हैं। पानी भरना, जंगलों से लकड़ी लाना, या फिर और कोई भी कार्य हो, इसी समय पूरा करना होता है। लेकिन गाँव से बाहर निकलने पर सख्त पाबंदी लगा दिया गया है। बगैर दबाव के ही यहाँ के ग्रामीण इन नियमों का पालन करते आ रहे हैं।
कोरोना ने सभी पर अपना प्रभाव डाला, लेकिन इसने सब को मिलकर रहना सिखा दिया । परिवार क्या है, गाँव क्या है, बता दिया। इस प्रकार हम देखते हैं कि गाँव वालों के अनुशासन और और सूझबूझ के कारण यहाँ पर अब तक कोरोना महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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