top of page
Writer's pictureTumlesh Neti

'राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव' के जरिये युवाओं में बढ़ रही है अपनी संस्कृति के प्रति जिज्ञासा

पूरे विश्व में आदिवासी समुदाय की अनेक जनजातियां हैं। इन जनजातियों के अलग-अलग परंपराएँ, रीति-रिवाज, नृत्य एवं गान होते हैं, जो उनके त्योहारों एवं देवी देवताओं के पूजन कार्यक्रम, बच्चे के जन्म से लेकर विवाह एवं मृत्यु तक में देखने को मिलता है। आधुनिकीकरण के युग में धीरे-धीरे आदिवासी युवक एवं युवतियों की रूचि अपने समाज को जानने एवं उनके नृत्य, गान, बोली-भाषाओं को सीखने में कम होता जा रहा है।


मेरे दादा श्री नरसिंह नेटी जी बताते हैं कि, "पहले के समय में आदिवासी समाज के बीच मनोरंजन के इतने साधन नहीं रहते थे, ऐसे में लोग पूनम के चांद की रोशनी में या आग के बड़े-बड़े मसालों की रोशनी में अपने आदिवासी नृत्य और गीतों से अपना मनोरंजन किया करते थे। जब गाँव में कोई आदिवासी त्योहार या आदिवासी देवी देवताओं की पूजा होती तो दिन अपने नृत्य का प्रदर्शन किया करते थे। किंतु धीरे-धीरे मनोरंजन के साधन बढ़ते गए और युवा इस नृत्य से अपना रुझान कम करते गए और आज आलम यह है कि, छत्तीसगढ़ की आदिवासी संस्कृति बस्तर संभाग में ही सिमट कर रह गई है।"


28 से 31 अक्टूबर तक छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया। इस महोत्सव में सिर्फ़ छत्तीसगढ़ी ही नहीं बल्कि भारत के 27 राज्यों एवं 6 केंद्रशासित प्रदेशों के आदिवासी अपने नृत्य प्रस्तुत किये। स्विट्जरलैंड, श्रीलंका, मालदीव, सीरिया, युगांडा आदि 7 देशों के आदिवासी भी अपने नृत्यों का प्रदर्शन इस महोत्सव में किये। झारखंड से राव, त्रिपुरा से कोजागिरी नृत्य, तमिलनाडु से कथा लोक नृत्य, राजस्थान से गवरी नृत्य, मध्य प्रदेश से भगोरिया नृत्य, लद्दाख से चावलों नृत्य, गुजरात से सिंधी घोड़ी नृत्य आदि विभिन्न नृत्यों का खूबसूरत प्रदर्शन देखने को मिला। इस कार्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले आदिवासी नृत्य को 5 लाख, द्वितीय को 3 लाख एवं तृतीय आने वाले 2 को लाख पुरस्कार दिया गया। इस महोत्सव की एक खास बात यह भी थी की वहाँ पर आदिवासी समुदाय से जुड़े हुए बहुत से स्टॉल लगाए गए थे जहाँ आदिवासी समुदाय के वेष-भूषा, खान-पान, हस्तशिल्प कला, आदि के बारे जानने और देखने का भरपूर मौका मिला।

झारखंड राज्य की आदिवासी नृत्य, छाहुल ; फ़ोटो स्रोत:- @gochhattisgarh

आदिवासी नृत्य महोत्सव का यह दूसरा संस्करण था, इस महोत्सव ने छत्तीसगढ़ में एक ऐसा माहौल बनाया है कि फ़िर से आदिवासी युवा अपने जनजातियों के बारे में जानने के लिए लालायित हो रहे हैं। अपने जनजाति के लोक नृत्य को सीखने के लिए उत्साहित हैं और इस सोशल मीडिया के दौर में आदिवासी युवक युवतियां बढ़ चढ़कर आदिवासी नृत्य महोत्सव की प्रशंसा कर रहे हैं। अपने समुदाय के प्रति अब एक आदर और सम्मान देखने को मिल रहा है। इस कार्यक्रम को ऑनलाइन भी बहुत ज्यादा आदिवासी समुदाय के युवा वर्ग में देखा गया। छत्तीसगढ़ में इस आदिवासी नृत्य महोत्सव कार्यक्रम की शुरुआत विकाशखंड स्तर से होती है। परिणामस्वरूप एक दूर गाँव में रहने वाले आदिवासी बालक तक भी इस नृत्य महोत्सव की गूंज चली ही जाती है।

समूह में मनोरम नृत्य करती आदिवासी युवतियां, फ़ोटो स्रोत:- @gochhattisgarh

छत्तीसगढ़ राज्य एक मात्र ऐसा राज्य है जो इस प्रकार के राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इस एक आयोजन से आदिवासी युवा अपने समुदाय के कला संस्कृति और सभ्यता से जुड़ने लगे हैं। इस तरह के अयोजन हर राज्य सरकार द्वारा एवं केंद्र सरकार द्वारा भी किया जाना चाहिए, जिनसे कई विलुप्त होती आदिवासी समुदाय और उनकी कला एवं संस्कृति को बचाया जा सके और बिखरे हुए आदिवासी समुदायों को अपनी अनूठी संस्कृति को दिखाने का एक मंच मिल सके।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


Comentarios


bottom of page