एनडीए द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हेतु द्रौपदी मुर्मू व विपक्ष द्वारा यशवंत सिन्हा को उतारा गया है। 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होंगे व 21 जुलाई को चुनाव का परिणाम आएगा। 29 जून नामांकन की आखिरी तारीख है।
भारत की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के बाद अब ऐसा कहा जा रहा है कि दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बन सकती हैं। द्रौपदी मुर्मू आदिवासी दलित महिला है और भारत के राजनीति में ऐसा कम देखा जाता है कि महिलाओं को बड़े पदों पर लड़ने के लिए चुना गया हो। खासतौर पर एक दलित या आदिवासी महिला को।
यूँ तो क्यूंकि भाजपा की गठबंधन पार्टी एनडीए द्वारा द्रौपदी को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हेतु उतारा गया है और वह सत्तारूढ़ पार्टी है तो द्रौपदी के तरफ काफी झुकाव भी देखने को मिल रहा है। कई लोग द्रौपदी के जीतने की आशंका भी जता रहें हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह राजनीति में महिलाओं के लिए नए दरवाज़े खोलने का काम करेगा, साथ ही दलित और आदिवासी समुदाय से आने वाली महिलाओं का भी। आज भी महिलाओं को लेकर समाज की मानसिक स्थिति घर की चौखट तक ही अटकी हुई है। वहीं जब कोई दलित/आदिवासी समाज की महिला आगे बढ़ती है तो उसे छोटी जाति का कहकर समाज हर तरह से, हर कदम पर दबाने की कोशिश करता है। ऐसे में अगर एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में चुनी जाती हैं तो इससे राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को और महत्वता मिलेगी।
भारत में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू
इसके साथ ही भारत के अगले राष्ट्रपति चुनने के लिए राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राष्ट्रपति पद के लिए दो बड़े नाम सामने आये हैं, पहला द्रौपदी मुर्मू और दूसरा यशवंत सिंह। दोनों का संबंध झारखंड से जुड़ा हुआ है। वहीं भाजपा गठबंधन एनडीए द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू को प्रत्याशी के रूप में उतारना काफी चर्चे में हैं। द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी महिला और दूसरी महिला राष्ट्रपति बन सकती हैं।
राष्ट्रपति चुनाव व परिणाम की तारीख
भारत के अगले राष्ट्रपति के चयन हेतु 29 जून तक नामंकन होगा। वहीं 18 जुलाई को मतदान व 21 जुलाई 2022 को चुनाव का नतीजा आ जाएगा। इसके साथ ही भारत को अपना अगला राष्ट्रपति भी मिल जाएगा।
राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों का नामंकन
एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू 24 जून 2022 को अपना नामांकन दाखिल करेंगी। वहीं एनसीपी चीफ शरद पवार के मुताबिक, विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा 27 जून 2022 को अपना नामांकन भरेंगे।
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति प्रत्याशी चुने जाने पर मिला नेताओं का साथ
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कई नेताओं ने उन्हें शुभकामनाएं दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करते हुए कहा कि, “मुझे भरोसा है कि द्रौपदी मुर्मू हमारे देश की एक महान राष्ट्रपति होंगी। द्रौपदी मुर्मू ने अपना जीवन समाज की सेवा व गरीबों, दलितों तथा हाशिये पर खड़े लोगों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित किया है।”
इसी के साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर खुशी जताई। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, ‘द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाना खुशी की बात है। द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला हैं। एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवार बनाया जाना अत्यंत प्रसन्नता की बात है।’ उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा, ‘द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा सरकार में मंत्री तथा इसके पश्चात् झारखण्ड की राज्यपाल भी रह चुकीं हैं। कल प्रधानमंत्री मोदी ने बात कर इसकी जानकारी दी थी कि द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी को भी इसके लिए हृदय से धन्यवाद।’
राष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी चुने जाने पर द्रौपदी मुर्मू के विचार
ओडिशा की रहने वाली द्रौपदी मुर्मू इससे पहले झारखंड की पहली महिला आदिवासी राज्यपाल भी रह चुकी हैं। उनकी उम्र 64 साल है। राज्यपाल के पद से सेवानिवृत होकर वह अपने राज्य ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रहती हैं। यह उनके पैतृक गांव बैदापोसी का प्रखंड मुख्यालय है।
आपको बता दें कि वह झारखंड में सबसे लंबे समय (छह साल से ज़्यादा समय) तक राज्यपाल रहीं है। राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने पर उन्होंने स्थानीय मीडिया से कहा,”मैं आश्चर्यचकित हूँ और ख़ुश भी क्योंकि मुझे राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है। मुझे टीवी देखकर इसका पता चला। राष्ट्रपति एक संवैधानिक पद है और मैं अगर इस पद के लिए चुन ली गई, तो राजनीति से अलग देश के लोगों के लिए काम करूंगी। इस पद के लिए जो संवैधानिक प्रावधान और अधिकार हैं, मैं उसके अनुसार काम करना चाहूंगी। इससे अधिक मैं फ़िलहाल और कुछ नहीं कह सकती।”
जानिये द्रौपदी मुर्मू के जीवन और राजनैतिक सफ़र के बारे में
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 1979 में द्रौपदी ने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए किया था। इसके बाद उन्होंने ओडिशा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी की। उस समय वह सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं। बाद में उन्होंने शिक्षण का कार्य भी किया। उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में एक माननीय अध्यापिका के तौर पर भी पढ़ाया। जब वह नौकरी कर रहीं थी तो उन्हें एक मेहनती कर्मचारी के रूप में पहचाना जाता था।
अगर द्रौपदी मुर्मू के राजनैतिक सफर की बात की जाए तो उनकी शुरुआत वार्ड काउंसलर के तौर पर साल 1997 में हुई थी। उस समय वह साल 1997 में वार्ड काउंसलर के रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में वॉर्ड पार्षद चुनी गईं थीं और नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बनाई गईं थीं। इसके बाद वह राजनीति में नये आयामों को हासिल करती रहीं। साल 2000 से 2009 के बीच वह रायरंगपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर दो बार विधायक बनी हैं। पहली बार विधायक बनने के बाद वह साल 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री रहीं हैं। उन्होंने मंत्री के पद पर होते हुए क़रीब दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला है। वह उस समय नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी ओडिशा में गठबंधन की सरकार चला रही थी।
द्रौपदी को ओडिशा में सर्वश्रेष्ठ विधायकों को मिलने वाला नीलकंठ पुरस्कार भी मिल चुका है। जब साल 2015 में उन्हें पहली बार राज्यपाल बनाया गया तो उससे पहले तक वह मयूरभंज जिले की बीजेपी अध्यक्ष थीं। साथ ही वह साल 2006 से 2009 तक बीजेपी के एसटी (अनुसूचित जाति) मोर्चा की ओडिशा प्रदेश अध्यक्ष रह चुकी हैं।
बता दें, इसके आलावा वह दो बार बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं। वह साल 2002 से 2009 और साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इस मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं। इसके बाद वह झारखंड की राज्यपाल नामंकित कर दी गईं और बीजेपी की सक्रिय राजनीति से अलग हो गईं।
झारखंड की पहली महिला राज्यपाल
18 मई 2015 को द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड की पहली महिला और आदिवासी राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी। वह 6 साल, एक महीना और 18 दिन इस पद पर रहीं। वह झारखंड की पहली राज्यपाल हैं, जिन्हें अपने पाँच साल के कार्यकाल को पूरा करने के बाद भी उनके पद से नहीं हटाया गया। साथ ही वह झारखंड राज्य की बेहद लोकप्रिय राज्यपाल रहीं जिनका पक्ष और विपक्ष दोनों द्वारा ही सम्मान किया जाता था। अपने कार्यकाल के दौरान द्रौपदी ने कुछ बहुत ज़रूरी फैसले लिए। बीते सालों में जब कुछ राज्यपालों पर राजनीतिक एजेंट की तरह काम करने के आरोप लगने लगे तो उस समय द्रौपदी मुर्मू ने राज्यपाल रहते हुए ख़ुद को इन विवादों से दूर रखा।
अपने राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान द्रौपदी ने स्कूलों और विश्व-विद्यालयों की व्यवस्था को सुधारने का काम किया। एक आदिवासी महिला होने के नाते उनका राजनीतिक सफ़र कभी आसान नहीं था लेकिन उन्होंने इस जंग में कभी भी खुद को पीछे नहीं होने दिया। अगर द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनती हैं तो वह आज़ादी के बाद जन्म लेने वाली पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी। अभी तो बस तुक्क लगाए जा रहें। आखिर में चुनाव परिणाम ही बताएगा कि भारत का अगला राष्ट्रपति कौन होता है।
नोट:- यह लेख ख़बर लहरिया की अनुमति के साथ पुनर्प्रकाशित किया गया है।
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