पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
पुराने जमाने से ही रोगियों के लिए, जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जा रहा है। जो बहुत ही सही साबित होता है। इससे अनेकों बीमारियों को ठीक किया जाता है। भले ही आजकल ‘मेडिकल साइंस’ को ज्यादा महत्व दिया जाता है। क्योंकि, इसका असर थोड़ी तेजी से होता है। लेकिन, इसके दुष्प्रभाव भी होते हैं। जितनी यह असरदार होती है, उतनी ही इसके दुष्परिणाम भी होते हैं। लेकिन, जड़ी-बूटियों से बनी दवाई का दुष्प्रभाव, बहुत कम रहता है। इसलिए, आज भी आदिवासी लोग जड़ी-बूटियों पर भरोसा करते हैं। जड़ी-बूटियों से बनाई गई दवाई, मेडिकल दवाई से सस्ती कीमत पर मिलती है।
पहाड़ों और गांव में रहने वाले आदिवासी, जड़ी-बूटी से बनी दवाई का उपयोग, आज भी करते हैं। गांव में रहने वाले बैगा जनजाति के लोगों को, जड़ी-बूटियों का ज्ञान सबसे ज्यादा होता है। और इसलिए, गांवों में बैगा लोगों को बहुत ज्यादा मानते भी हैं। बैगा, हमेशा जड़ी-बूटियों को जंगलों से खोजकर और खुद पीस कर दवाई बनाते हैं। और इनके बनाये जड़ी-बूटियों से लोगों की बीमारी भी ठीक हो जाती है। वहीं मेडिकल दवाई का उपयोग तो आज कल बहुत ज्यादा मात्रा में किया जाता है। छोटे-से-छोटे बीमारी के लिए, अब लोग डॉक्टरों के पास जाते हैं। और डॉक्टर, ‘मेडिकल दवाई’ की सलाह देते हैं और अधिकतर लोग भी इसी दवाई पर ज्यादा विश्वास करते हैं। क्योंकि, यह बहुत ज्यादा तेजी से असर दिखाता है। चूँकि, यह एक केमिकल युक्त दवाई होती है।
ग्राम रतिजा के गणपत दास, जो आज भी जड़ी-बूटियों से बनी दवाई बनाने का ज्ञान रखते हैं। उनका कहना है कि, वे बचपन से ही जड़ी-बूटी बनाने की जानकारी प्राप्त किये हैं। क्योंकि, उनके बड़े भाई भी इस तरह के जड़ी-बूटियों से दवाई बनाते थे। जिसे देख-देख कर सीख लिया।
आइये जानते हैं, कैसे जड़ी बूटियों से, बीमारियों का इलाज करते हैं
१. कमजोरी के लिए, उपयोग होने वाली जड़ी - बाल रोहीना, मोहलाइन जड़ी, कोरिया जड़ी, करिभुलेंन, केवटी छली, रक्त गोईलर, चम्पा जड़ी, शाबर भंज, नगर केना, मुर्री जड़ी, काकेन छाली आदि जड़ियों को सुखा कर, अच्छे से पीस लिया जाता है। पीसने के बाद, इसमें गुड़ को मिलाकर, कड़ाही की मदद से, आग में पकाया जाता है। फिर, गोल-गोल गोटी बांध दिया जाता है। गोटी बनाने के बाद, इसे धूप में भी सुखाना पड़ता है। जब ये सुख जाता है, तो रोज सुबह खाली पेट में एक-एक गोटी खाना पड़ता है। उनका मानना है कि, यह दवाई बहुत असर करती हैं। ये दवाई कमजोरी के साथ-साथ, हाथ-पैर दर्द और खून की कमी वाले लोगों के लिए, बहुत फायदेमंद साबित होता है। खासकर, गर्भवती महिलाओं के लिए, यह बहुत अच्छी दवाई है।
२.पेचिस के लिए बनाते हैं, ऐसे दवाई - कुम्हि फूल को दो तरीके से दवाई बनाते हैं। और दोनों ही तरीके से बनाई गई दवाई, अच्छा काम करती है। कुम्हि फूल की गोटी बांधकर, दवाई बनाई जाती है। और दूसरा तरीका यह भी है कि, कुम्हि फूल को उबाल कर, इसका टॉनिक बनाकर, इसमें हल्का नमक मिलाकर, बनाया जाता है। जो पेचिश के लिए, बहुत ही अच्छी दवाई साबित होती है।
३.लसम खासी के लिए, दवाई - लसम खाँसी के बांचेच, जो जंगलों में ही मिलता है और दुकानों में मिलने वाली पीपर को, थोड़ा भून कर, गुड़ के साथ, गोटी बांधकर खाने पर, लसम खांसी को ठीक किया जाता है।
जड़ी-बूटी दवाई से ऐसे हुए ठीक
ग्राम झोरा की अशोक बाई, जिनकी उम्र 50 साल हो गयी है और इस उम्र में, कमजोरी आना और खून की कमी होना आम बात है। अशोक बाई का कहना है कि, वे लंबे समय से कमजोरी से परेशान थी। और मेडिकल दवाई और डॉक्टरों की सलाह से, ढेर सारे फल का सेवन कर चुकी थी। जिसमें किसी तरह का भी लाभ, उन्हें नहीं मिल पाया था। तो उन्होंने, ग्राम रतिजा के गणपत दास को इस परेशानी के बारे में बताया। फिर, गणपत दास जी ने, अलग-अलग जंगलों से जड़ी-बूटी को इक्कठा कर, दवाई को बनाया। फिर उस दवाई को, रोज सुबह, लगातार 2 महीने तक, खाली पेट खाने के बाद, उन्हें कमजोरी से राहत मिली। गणपत दास, जड़ी-बूटी दवाई देने के साथ, झाड़-फूंक करने का काम भी करते हैं। इस कारण, इनके पास हमेशा लोग आते रहते हैं।
जड़ी बूटी दवाई पर आ रहा संकट
जड़ी-बूटियों से बनाये जाने वाले दवाई को, जंगलों और पहाड़ों से खोजकर लाते हैं। लेकिन, अब जंगलों का बहुत ज्यादा विनाश हो रहा है। सरकारें और लोग, सभी प्रकार के पेड़ों को काटे जा रहे हैं। और-तो-और गर्मियों के समय, आग भी लगा देते हैं। जिससे, जड़ी-बूटी बनने वाली पेड़ों का विनाश होते जा रहा है। जिससे, लोगों को ऐसे पेंडो के जड़ी, पत्ती और छाल के ना मिलने से, दवाई बनाने में बहुत ज्यादा दिक्कत हो रहा है। वहीं, बहुत से लोग, ऐसे पेंडो के ना मिलने से दवाई बनाना भी छोड़ दिये हैं।
जड़ी-बूटियों से बनाई गयी दवाई हो या मेडिकल दवाई, इनका कभी भी, बिना किसी के सलाह से उपयोग नहीं करना चाहिए। अगर, बिना किसी जानकार के इसका उपयोग करते हैं, तो कभी-कभी यह नुकसानदायक भी साबित हो सकता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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