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Writer's pictureSantoshi Pando

पंडो समुदाय का यह युवा कर रहा है दूसरों को प्रेरित

"एक पंथ दो काज" बिलासपुर जिले के रोटीमार नामक गाँव के निवासी विश्राम पण्डों इस मुहावरे के जीते-जागते उदहारण हैं, यानी मेहनत और लगन के साथ अपने दम पर एक साथ दो कार्य करना, उन्होंने जंगल-पहाड़ों के बीच बसे गाँव में रहते हुए ना सिर्फ बी.ए.फाइनल की पढ़ाई पूरी किए, बल्कि साथ में अपने जीवन-यापन के लिए छोटे-छोटे काम करते हुए उघमिता की ओर कदम भी बढ़ाया। विश्राम पण्डों ने १७ वर्ष के उम्र में 12 वीं कक्षा की पढ़ाई करते ही अपने पैरों में खड़े होने की शुरुआत कर दिए थे, और ऑटो पार्ट्स का काम सीखते थे।

अपने दुकान में गाड़ी ठीक करता विश्राम पण्डों

विश्राम जी ने अपने ११वीं-१२वीं की पढ़ाई पेन्ड्रा में किराए के कमरे ले कर करते थे और, उन्होंने अपने घर की खराब आर्थिक स्थिति को देखकर खुद से सोचा कि पढ़ाई के साथ-साथ कुछ और काम भी करना चाहिए, उनके मकान मालिक ने ही एक ऑटो गैराज में काम ढूंढ दिया।


फिर विश्राम ने रोजाना स्कूल से 4 बजे छुट्टी होने पर चार घण्टे आटो रिपेयरिंग दुकान में काम करता था इनके चार घण्टे मजदुरी 100 रु. महिना था। इस मेहनत मजदूरी से मिलने वाले पैसे से जेब-खर्च निकल जाता था, तीन वर्ष के बाद उन्होंने डॉ.भवरसिहं पोर्ते शासकीय महाविद्यालय पेन्ड्रा में अपना बी.ए की पढ़ाई पुरी कर तथा साथ में ऑटो पार्ट रिपेयरिंग का पूरा काम भी सिख गए।


उसके बाद विश्राम जी एक एजेंसी से पैसा लेकर अपने घर से पाँच किलोमीटर की दूरी पर अपना खुद का एक रिपेयरिंग दुकान खोल लेते हैं। दुकान शुरू करने से लेकर अभी तक उनका यह दुकान बहुत अच्छा चल रहा है, इसी पैसे से वे अपना घर भी चलाते हैं। विश्राम जी ये भी बताते हैं कि "तीन वर्ष पहले मेरे घर की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब था पर जब से मैंने गैरज का काम शुरू किया हूं और तब से मेरे घर परिवार का हालात बदल गया है।"


विश्राम जी, पंडो समुदाय के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्वरूप हैं, उन्हें देखकर और भी युवा पढ़ाई के साथ-साथ रोजगार करने का सोचेंगे।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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