सेवा जोहार, मेरे नाम तुमलेश नेटी है मैं छत्तीसगढ़ राज्य से हूँ, जी हाँ छत्तीसगढ़ का नाम सुन कर आप नक्सली हमलों में शहीद जवानों की याद आई होगी, लेकिन नक्सली मुठभेड़ों के अलावा भी एक छत्तीसगढ़ है जिसमें आप को आदिवासी कला, संस्कृति और परंपरा की एक अलग ही छटा देखने को मिलती है, मैं उसी छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का रहने वाला हूँ। मेरे पिता जी एक किसान हैं और थोड़ा बहुत गायन वादन भी करते हैं, इस कारण से मेरे पिता जी को आस-पास में सभी लोग जानते हैं। मेरे पिता जी थोड़े जागरूक इंसान होने के कारण मेरी भर्ती जिला मुख्यालय के एक आदिवासी छात्रावास में कर दिए और वहाँ जाकर मैं अपनी बोली, भाषा, संस्कृति, एवं परंपरा से थोड़ा दूर हो गया था ज्यादातर पढ़ाई में ही लगा रहा, लेकिन मन में आपने समुदाय को जानने की ललक शुरू से थी।
आदिवासी लाइफ मैटर में जुड़ने से पहले मैं सिर्फ़ अपने पिताजी के नाम से ही जाना जाता था या यूँ कहिए की मैं केवल अपने घर वालों के लिए जीता था, और सिर्फ़ नाम के ही युवा आदिवासी में मेरी गिनती होती थी। मैं 12वीं तक की पढ़ाई पूरी कर चुका था, मेरे किस्मत अच्छी थी कि जैसी ही मैं अपने स्कूली शिक्षा पूरा किया और अपने आदिवासी समाज के बीच उठना बैठना शुरू ही किया था कि मेरे घर वालों ने मुझे अपने कॉलेज की पढ़ाई के लिए एक मोबाईल फ़ोन ख़रीद कर दिए। फ़ोन भी इस लिए दिया गया था क्योंकि कोरोना महामारी के चलते स्कूल कॉलेज बंद थे और पूरा दुनिया ऑनलाइन हो गई थी। नया-नया मोबाइल था और मुझे ज्यादा कुछ जानकारी भी नहीं थी, लेकिन मुझे अपने एक दोस्त से पहली बार पता चला कि ALM के सह-संस्थापक आ रहें हैं हमारे जिले के आदिवासी समुदाय के युवाओं से मिलने।
मैं भी दोस्त के साथ चला गया, वहाँ पहली बार मैं अशीष दादा से मिला उनसे ही मैने पहली बार सोशल मीडिया, मोबाईल पत्रकारिता के बारे में जाना, अशीष दादा ने हमें बहुत अच्छे से जानकारी दी और हमें बताया कि हम अपने समाज की अनसुनी कहानियां, तकलीफ़, और हक़ की आवाज़ उठा सकते हैं। आशीष दादा ने हम से हमारे समाज के बारे में पूछा लेकिन मुझे दुःख हुआ की मुझे और वहाँ बैठे कोई भी आदिवासी युवक को उतनी अच्छे से कुछ पता ही नही था, वो दिन है और आज के दिन है, मैं आदिवासी लाइफ मैटर से जुड़ कर अपने समाज के बारे में अनेक जानकारीयां प्राप्त कर रहा हूँ और ALM के साथियों के द्वार दिए गए ट्रेनिग से मैं अपने आदिवासी समुदाय की अनसुनी कहानियां, तकलीफ़, और हमारे हक़ की आवाज़ उठाने की कोशिश कर रहा हूँ। ALM के ट्रेनिंग से मुझे लेख लिखना तो आ गया, साथ में मुझे photography, videography, video-photo editing भी सीखने को मिला, जिसे सिख कर मुझे पता चला कि photography और videography में मैं अपना पूरा ज़िंदगी दे सकता हूँ। आदिवासी लाइफ मैटर से जुड़ने के बाद मैंने बहुत सारे लेख लिखा और विडियो भी बनाए, और अब जिस लड़के को उसके पापा के नाम से जानते थे उसमें थोड़ा बदलाव आने लगा है, मतलब अब मुझे भी लोग जानने लगे हैं। मैं ALM में काम कर के बहुत खुश रहा हूँ, सब कुछ बड़े अच्छे से चल रहा है, मेरे कॉलेज की पढ़ाई का खर्चा भी ALM से मिल जाता है और मुझे अपने जेब खर्च के लिए भी घर से मांगना नहीं पड़ता है। मेरे समुदाय के लोगों के बीच मेरी एक जागरूक युवा के तौर में पहचन बन गई है, और इस कारण से मेरे घर वाले भी मेरा पूरा समर्थन करते हैं।
मेरी खुशी में चार चांद तब लगा जब ALM ने मुझे जन जागुरूकता आभियान के लिए चुना जो की छत्तीसगढ़ के चार जिलों में जा कर कोरोना के टिकाकरण के लिए जागरूक करना था। मतलब जो लड़का कभी अपने जिले से बाहर नहीं गया वह चार जिलों के आदिवासी समुदाय को जागरूक करने लगा। जागरूकता अभियान में मुझे बहुत सारे आदिवासी समुदाय के बीच रहने का मौका मिला, हम रोज़ चार से पांच गांव में जाते थे और समाज के लोगों से मिल कर लोगों को जागरूक करते थे। जिस गांव में रात हो जाती थी हम वहीं रुक जाते थे। इस दौरान मुझे समाज के लोगों को और क़रीब से जानने का मौका मिला, इस जागरूकता अभियान के बारे में जब मेरे जिले में पता चला तो वहाँ के पत्रकारों ने भी मेरे बारे में लिखा जिससे जिले के लोग मुझे और भी अच्छे से जाननें लगे।
बचपन से ही मुझे फ़ोटो लेने का शौक था और जैसे ही मेरे पास एक मोबाईल फ़ोन आया तो मैंने तुरन्त से अपना सोशल मीडिया ओपन कर दिया और फ़ोटो डालने लगा था, लेकिन उतने अच्छे परिणाम नहीं मिल रहे थे, परन्तु जब मैं ALM से जुड़ा तब से मेरी फ़ोटो ग्राफी में बहुत सुधार हुआ, जिसका परिणाम मुझे अपने लिए गए फ़ोटो के लाइक, कमेंट और फॉलोवर्स के बढ़ते संख्या से पता चलने लगा। आदिवासी लाइफ मैटर में काम करने के कारण मुझे बहुत सारे छत्तीसगढ़ के गानों में सहायक कैमरामन बन कर काम करने का मौक़ा मिला है, और बहुत सारे डोकोमेंटेरी में भी सहायक के रूप में काम करने का मौक़ा मिला है।
ALM अब मेरे परिवार की तरह हो गया है, इस परिवार ने मुझे छत्तीसगढ़ राज्य में ही नहीं बल्कि ओडिशा, झारखंड, मध्यप्रदेश, त्रिपुरा के आदिवासी समुदाय के लोग जानने लगे हैं। आज मैं अपने आप को बिना ALM के देखता हूँ तो अपने आप को एक शून्य की तरह पाता हूँ। ALM के कारण ही मैं नाम मात्र के आदिवासी युवक से एक जागरूक आदिवासी युवक बन पाया हूँ। मैं बहुत आभारी हूँ अपने इस ALM परिवार का जिसने मुझे इस काबिल बनाया कि मैं अपने आदिवासी समुदाय के हक़ की आवाज़ उठा सकूं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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