पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
जंगलों में पाए जाने वाला कोसम पेड़, हमारे लिए कई मायनों में उपयोगी साबित होता है। पूर्व काल में इसका बहुत महत्व था, वैसे तो आज भी है। किंतु, आधुनिक युग में प्राचीनकाल के जैसे प्राकृतिक चीजों का उपयोग अत्यंत कम हो चुका है।
प्राचिन काल से हमारे पूर्वज जंगली जड़ी-बूटियों से रोगों का निदान करते आ रहे हैं। कई तरह के जंगली जड़ी-बूटी का उपयोग कर हम अनेक रोगों से राहत पा सकते हैं। और इन में कोसम भी शामिल है। कोसम के फल को उपयोग में लाया जाता है। बाकी, इसके पत्तों का कोई उपयोग नहीं किया जाता है। इसकी टहनियां अधिकतर आग जलाने में उपयोग की जाती हैं।
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कोसम का फल आमतौर पर खट्टा होता है। लेकिन कुछ कोसम के प्रजाति के फल न के बराबर खट्टे होते हैं। जो खाने में बहुत अच्छे लगते हैं। इसमें नमक-मिर्च मिलाकर खाने में और भी स्वाद आ जाता है। कोसम पेड़ में फल चैत वैशाख में लगता है। और आषाढ़ सावन तक पक जाता है, इसका फल पेड़ में लम्बे समय तक रहता है। किन्तु अधिक बारिश-तुफान होने पर ये टहनियों से झड़ जाते हैं। इसका फल भादों कुंवार तक रहता है।
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कोसम का फल अपने खाने के साथ-साथ बेचने के भी काम आता है। गांव के लोग इसे तोड़कर बेचते भी हैं, जिससे उनको अच्छी-खासी आमदनी भी प्राप्त हो जाती है। और यह इस प्रकार से आय का साधन भी बन जाता है। शहरों में कोसम पेड़ न पाए जाने के कारण, उन्हें खरीद कर खाना पड़ता है। इसलिए कोसम फल की मांग अच्छी-खासी रहती है। इस कारण ग्रामीण आदिवासी इसे बेचते हैं।
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कोसम फल को खाने और बेचने के अलावा अन्य कार्यों के लिए भी उपयोग में लाया जाता है। इसके फल के बीज से तेल निकालकर सब्जी बनाने में उपयोग किया जाता है, साथ ही शरीर में लगाने के काम भी आता है। इसके तेल से सब्जी बनाने से सब्जी थोड़ा कड़वा लगता है, इसलिए इसके तेल को पहले कड़का लिया जाता है, ताकि सब्जी कड़वी न लगे।
इसका तेल सब्जी बनाने और शरीर में लगाने के साथ-साथ दवाई के रूप में भी काम आता है। कोसम तेल दाग-खुजली आदि जैसी इन्फेक्शन फैलाने वाले बीमारियों से राहत दिलाता है। इसका तेल खुजली के लिए असरदार साबित होता है। इस तेल का कई प्रकार के रोगों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है।
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कोसम का तेल निकालने के लिए उसके ऊपरी परत (छिलका) को हटाकर उसके मध्य भाग (जिसे खाया जाता है) को हटा लेते हैं, और बीज को अलग कर लिया जाता है। फिर उसके बीज के उपरी छिलके को भी हटा लेते हैं, और उसे अच्छे से सूखाकर, कूटकर आटा की तरह बना लिया जाता है। फिर उसे एक कपड़े में पोटली बांधकर, एक बर्तन में पानी भरकर उसके उपर उस पोटली को रख देते हैं। फिर उसे चूल्हे में चढ़ाकर गर्म किया जाता है, जिससे कूटे हुए कोसम में नमी आ जाती है और उसे पुटली में भरकर तिरही में पेरा जाता है। जिससे हमें कोसम का तेल प्राप्त हो जाता है।
हमारे आस-पास अनेक प्रकार के पेड़-पौधे उपस्थित हैं, जिनका उपयोग कई चीजों के लिए किया जाता है। लेकिन जानकारी न होने के कारण उनका उचित उपयोग करने से हम वंचित रह जाते हैं। इसलिए हमें हमारे पूर्वजों की संस्कृति और औषधि विद्या को जानने की अतिआवश्यकता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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