top of page
Writer's pictureJetho Singh Andil

जानें, करम वृक्ष के महत्त्व और उपयोग के बारे में

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


कर्मी के पेड़ को ‘कर्म सेन वृक्ष’ के नाम से भी जाना जाता है। इसके डगाली को तोड़कर, कर्मडॉर त्यौहार के लिए पूजा में लाया जाता है। यह खेत-खलिहान, पहाड़ और जंगलों में मिलता है। यह पेड़, गांव के आसपास मिलने वाला वृक्ष है। इस पेड़ का कई प्रकार की बीमारियों के लिए, इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। कर्मी का वृक्ष, बहुत ही पूजनीय वृक्ष है। जिसका उपयोग, पूजा के लिए एवं औषधि के रूप में भी किया जाता है। इस वृक्ष का छाल, गैस्ट्रिक बीमारी के लिए बहुत ही उपयुक्त एवं फायदेमंद होती है।

कर्मी पेड़

आदिवासी गोंड जनजाति के लोग, इसे पुरखों से पेड़ का देव के रूप में मानते आ रहे हैं। जहाँ, कर्मडॉर त्योहार के दिन, कर्म पेड़ की डाली की पूजा होती है। कर्म के डाली को लाने के लिए, गाना बजाते हुए जाते हैं और वहां पूजा-पाठ करके, डाली को तोड़कर वहां से फिर, गाना बजाते हुए आंगन में लाते हैं। और बीच आंगन में, गाड़ कर पूजा-पाठ करते हैं। 'कर्म सेन' की रात भर कहानी सुनते हैं और नाच-गाना करते हैं। अंत में नारियल तोड़कर, होम-धूप देकर पूजा संपन्न करते हैं। फिर, सुबह उठकर उसे नदी या तालाब में बहा देते हैं।

कर्मी के छाल को छिलते हुए

कर्मी पेड़ का छाल का उपयोग एवं उसका महत्व


प्रातः काल के समय, नहाने के बाद, कर्मी पेड़ के पास जाकर चावल से नेवता आर्जी करके छाल को धुप में सुखाते हैं। छाल के अच्छे से सूखने के बाद, उसे अच्छी तरह से संभाल कर घर में रखते हैं। ताकि, उसका उपयोग कभी भी आवश्यकता पड़ने पर किया जा सके या कोई भी उसे मांगे, तो दे सकें।


गैस्ट्रिक बीमारी वाले, इस छाल का सेवन, सुबह दाँत घिसकर खाली पेट में छाल को चबाते हुए उसके रस को पूरी तरह चूसें। यह प्रतिदिन सुबह-शाम, खाली पेट में पंद्रह दिनों तक लगातार करना है। ताकि, उसका रस शरीर में मिश्रित हो जाए। ऐसा करने से गैस्ट्रिक बीमारी जल्दी ठीक होती है और पेट भी साफ रहता है। और इस दवाई का सेवन कर रहे हों, तो मांस-मछली और चिकन नहीं खाना है। और महिलाओं का महीना चल रहा हो, तो उस स्थिति में नहीं खाना है एवं उस औषधि को छूना भी नहीं है।


मैंने ऑयुर्वेद की जानकारी, मेरे दादा स्वर्गीय हीरासिंह सारुता द्वारा प्राप्त किया एवं उनके साथ में रहे कर, अनेकों जड़ी-बूटी से, बिमारियों का इलाज, कैसे किया जाता है? सीखा। मेरे दादा जी के बताए औषधि से आस-पास गांव के जो लोग ठीक हुए, वे लोग आज भी दादा जी का नाम लेते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।


コメント


bottom of page