पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
महुआ के पेड़ को हम डोरी और कोया फूल के नाम से जानते हैं। यह पेड़ बहुत ही महत्वपूर्ण, फायदेमंद एवम गुणकारी है। हमारे आदिवासी गोंड जनजाति के लोग, इस पेड़ के महत्त्व को बहुत अच्छे से समझते हैं। डोरी पेड़ के फल, फूल और लकड़ी का उपयोग कर आदिवासियों को आर्थिक रूप में बहुत ही मदद मिलती है।
महुआ के फूल को कोया फूल के नाम से भी जाना जाता है। महुआ का फूल जब गिरने लायक हो जाता है तो, सभी लोग टोकरी लेकर, सुबह फूल बिनने के लिए चले जाते हैं और दोपहर तक वापस लौट आते हैं। उसके बाद फूल को धूप में सुखा दिया जाता है।और ऐसे ही लगातार दो-तीन सप्ताह तक चलता रहता है। फिर महुआ के फूल को धूप में अच्छे से सुखाकर, साफ कर उन्हें अच्छे दामों में बेच देते हैं और कुछ को घर में बचाकर रखते हैं, ताकि उसका इस्तेमाल जरूत पड़ने पर उपयोग में लाया जा सके। जिससे आदिवासी परिवारों को घर चलाने के लिए कुछ रूपया मिल जाता है।
महुआ के फूल को पकाकर, महुआ लाटा बनाया जाता है। जिसे सभी आनंद से खा सकते हैं, यह बहुत ही स्वादिष्ट लगता है। फूल के समाप्त होने के बाद, उसमें फल लगना शुरू हो जाता है। इसके फल के ऊपरी हरे भाग को गाय, भैंस और बकरी के चारा के रूप में उपयोग करते हैं। और जब वह पककर तैयार हो जाता है, तो पेड़ से सारे फल को तोड़ कर घर ले आते हैं। फिर, फल से बीज को अलग करते हैं। इसके बीज को गुल्ली के नाम से जाना जाता है। गुल्ली का छिलका वा दार को अलग करते हैं, अलग-अलग करने के बाद उसे धूप में सुखाया जाता है। डोरी फल के बीज से तेल भी निकाला जाता है, जो भिन्न तरीके से उपयोग एवम काम में लाया जाता है।
इसके सूखने के बाद ओखली या ढेंकी की सहायता से कूट ली जाती है। फिर, उसको कपड़े में लपेटकर या बांध कर आग में भपोया जाता है। फिर उसको तुरंत पुटी में डाल कर अच्छे से ठूंस कर भर देते हैं। फिर उसे तिरही में रखकर, उससे तेल निकाला जाता है। इसे तीन-चार बार ऐसा ही करते रहते हैं, जब तक कि, उसमें से सारा तेल निकल ना जाए। इसके तेल का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। यह तेल हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण व फायदेमंद साबित होता है और इस तेल का प्रयोग दवाई के रूप में भी किया जाता है।
डोरी तेल बहुत लाभदायक होता है। बुखार से पीड़ित जिसका शरीर तप रहा हो, उस समय इस तेल से मालिश करने से शरीर का तेज बुखार कम हो जाता है और कुछ समय तक आराम मिलता है। और यह तेल लकवा बीमारी को भी ठीक करता है। इस प्रकार से यह कई तरह के छोटे-मोटे बीमारियों को ठीक करता है।
डोरी का खरी भी बहुत काम आता है। इसे डोरी से तेल को अलग करके निकाला जाता है, उसी को खरी कहते हैं। यह भी औषधी के रूप में काम आता है, शरीर में यदि किसी मकड़ी या कीड़े का पानी पड़ा हो तो, डोरी के खरी को जला कर एक गिलास पानी में डालकर, उससे जो भाप निकलता है, उस भाप को लेना चाहिए। ऐसा चार-पांच बार करना चाहिए, ताकि जो कीड़े-मकोड़े का गंदा पानी है वह सूख जाए।
इसे चहरे में लगाने से दाद या खुजली नहीं होती और खरी को जलाने से घर में सांप-बिच्छू नहीं आते हैं। इसलिए, डोरी का पेड़ हमारे आदिवासी गोंड जनजाति के लोगों के लिए अति आवश्यक है। इसके तेल को बालों में लगाने से बाल मजबूत होते हैं, इसे हाँथ-पांव में भी लगाते हैं। यह तेल छोटे बच्चे को मालिश करने के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसके तेल को खाने के लिए भी प्रयोग कर सकते हैं, इसको खाने से हानि नहीं होती है। भले ही यह थोड़ा चिपचिपा होता है, इसे सब्जी बनाने के लिए एवम रोटी बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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