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आइए जानें बेर पेड़ के गुणवत्ता और उसके महत्त्व के बारे में

Writer's picture: Jetho Singh AndilJetho Singh Andil

पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित


बेर के पेड़ के पत्ते और छाल को हमारे गोंड आदिवासी औषधी के रूप में कई प्रकार से उपयोग में लाते हैं। यह झब्बे दार पेड़ होता है और इसके डाल नुकीले-नुकीले कांटो से गूंथे होते हैं। बेर के पेड़ से हमें अनेक प्रकार के लाभ मिलते हैं। बेर का पेड़ कई प्रकार के होते हैं। यह बेर का पेड़ हमारे गांव, शहर एवं पहाड़ों में पाया जाने वाला पेड़ है।

बेर का पेड़

हमारे गोंड जनजाति के लोगों का मानना है कि, बेर का पेड़ हमारे लिए बहुत ही उपयोगी एवं फायदेमंद साबित होता है। बेर का पेड़ घर के बाड़ी और खेतों के मेंढ, पहाड़ों, टिकरा और मैदानों में पाया जाने वाला पेड़ है। इसमें केवल कलम बेर के पत्ते थोड़े लंबे-लंबे होते हैं। बाकि सभी बेर के पेड़ के पत्तियाँ छोटे-छोटे और एक समान होते हैं। लेकिन, इसके फल कई प्रकार के होते हैं। बेर के नाम भी अलग-अलग होते हैं, जैसे कलम बेर, गंगा बेर, सुपारी बेर, अंमती बेर, खट्टी बेर, मिट्ठी बेर आदि। इसके फल के आकर भी अलग-अलग होते हैं। यह छोटा, बड़ा, लंम्बा एवं गोल आकार के होते हैं। इन सभी बेर फलों का स्वाद भी अलग होता है। कोई बेर मीठा होती है, कोई खट्टा तो कोई कम मीठा तो कोई ज्यादा खट्टा होता है।

बेर का फल

बेर के पत्ते का उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है। जब किसी व्यक्ति को बिच्छू काटता है तो इसके पत्ते को अच्छे से चाबकर, जहाँ पर बिच्छू काटा हो वहां पर उसको लगाना चाहिए। ऐसा करने से दर्द कम होता है और बिच्छू का जहर धीरे-धीरे उतरने लगता है और वह ठीक भी हो जाता है। इसके पत्ते को लेप बनाकर सिर में भी लगाते हैं, इससे बालों का रुसी दूर होता है। और इसके छाल को पीसकर खुजली से बने घाव में लगाने से घाव धीरे-धीरे ठीक हो जाता है। बेर का फल लाभदायक होता है, इसको कच्चा या पक्का नमक के साथ खाने में बहुत ही आनंद मिलता है।


बेर जब पुरी तरह से पक कर तैयार हो जाता है तो उसको पेड़ में चढ़ कर हिलोरते हैं। इससे सारा पक्का बेर नीचे गिर जाता है। कच्चे व पक्के बेर को इकट्ठा कर, हम लोग उसे धूप में सूखा देतें हैं। इसके अच्छे से सूखने के बाद बेर की सब्जी बनाते हैं। इसका सब्जी बहुत स्वादिष्ट लगता है और इसे गर्मी के दिनों में खाना ही चाहिए। हमारे गोंड जनजाति के लोग पहले बेर को शादियों में, बारातियों को उसकी सब्जी पकाकर खिलाते थे। और नेग-जोंग करते समय, बेर की माला बनाकर दूल्हे राजा को साली द्वारा पहनाया जाता है। इस प्रकार हमारे पूर्वज बेर को महत्त्वपूर्ण मानते थे। और यह नेग-जोंग रिवाज़ आज भी कहीं-कहीं देखने को मिलती है।


हमारे गोंड जनजाति के लोगों द्वारा बेर के फल को सुखाकर अच्छे से उसकी कुटाई की जाती है। कूटने के बाद छलनी से गुठली और उसका पाउडर जिसे हम भूरका कहते हैं, उसे अलग-अलग करके उसमें स्वादानुसार नमक, मिर्च, लहसुन और धनिया पत्ति डाल कर, पानी मिलाकर अच्छे से फेंटते हैं। उसके बाद छोटा-छोटा वाडा जैसे रोटी बनाकर धूप में सुखाया जाता है। जब अच्छे से सूख जाता है, तब खाने लायक हो जाता है। यह खाने में बहुत स्वादिष्ट और चटपटा लगता है। इस बेर के रोटी को दो तीन महीनों तक रख भी सकते हैं, यह खराब नहीं होता है। गर्मी के मौसम में यह हमारे शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसे खाने से हमें गर्मी नहीं होती है।

दवाई बनाने के लिए बेर पेड़ के छाल को छिला जा रहा है

बेर की गुठली को तोड़कर उसमें से जो बीज निकलता है, उसे चिरावंदी कहते हैं। उसको निकालकर गुड़ के साथ मिलाकर खाते हैं। यह बहुत अच्छा लगता है और इसका लड्डू भी बनाया जाता है। हमारे गोंड जनजाति के लोग, बेर के पेड़ को बहुत अच्छा पेड़ मानते हैं। क्योंकि, हमें इससे कई प्रकार के लाभ एवं फायदे मिलते हैं। बेर के छाल एवं इसके पत्ते को दवाई के लिए उपयोग में लाते हैं और इसके कांटेदार डागाली से बाड़ी-कोला को रूंधने-बाँधने के लिए एवं खेतों को घेरने के लिए उपयोग में लाते हैं। ताकि, बाड़ी और खेतों के अंदर बैल, भैंस और बकरी न जा सके। इसके आलावा, फल से कई तरह के पकवान भी बनाऐ जाते हैं।


नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।

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