पंकज बांकिरा द्वारा सम्पादित
बैगा जनजाति के लोग, मुख्यतौर पे, जंगलों और पर्वतीय क्षेत्र में निवास करते हैं। पर्वतीय क्षेत्र में, आम तौर पे छोटे-छोटे गांव ही होते हैं, जहां पे रोजगार की समस्या, आए दिन बना रहता है। इस कारण, वहां के लोगों की, आर्थिक स्थिति कमजोर रहती है। और अधिकतर परिवार के मुख्य को यही चिंता रहता है कि, वो अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे करें। इस कारण से, बैगा समुदाय के लोग, अपने पूरे परिवार के साथ, गांव छोड़ कर, शहर की ओर काम करने के लिए जाते हैं।
बैगा जनजाति के लोग, बड़े शहरो में वहां काम करने जाते हैं। जहाँ, उन्हें लंबे समय के लिए काम मिल जाए। शहरों में बिल्डिंग और छोटे मकान तो बनते रहते हैं। जहाँ पर, उन्हें तीन-चार महीनों के लिए काम तो मिल जाता है। लेकिन, उनके बच्चे, गांव के स्कूलों से लंबे समय के लिए दूर हो जाते हैं और शहरों में तो बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। और सारा दिन खेलते रहते हैं। अंतः जब वे दो-चार महीने के बाद, अपने गांव वापिस जाते हैं। फिर, उनके माता-पिता उन्हें स्कूल भेजते हैं। लेकिन तब बच्चे स्कूल जाने के नाम से रोने लगते हैं। क्योंकि, बच्चे लंबे समय के लिए पढ़ाई से दूर हो जाए रहते हैं और सारा दिन खेलने-खाने में ही गुजार देते हैं। ऐसे बच्चे स्कूल जाने से मना करते हैं और स्कूल छोड़ के आने पे भी, स्कूल से भाग जाते हैं।
तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, बैगा जनजाति के बच्चे, गन्ने के खेत में गन्ने के ऊपर बैठे हैं। चूँकि, उनके माता-पिता गन्ना खेत में काम करने के लिए आए हैं। जो तीन-चार माह गन्ना काटने का ही काम करेंगे और यह बच्चे इसी तरह इधर-उधर खेल कर अपना समय बिताएंगे। जिससे इनका खेलने-कूदने में मन लगा रहता है और पढ़ाई-लिखाई में ध्यान कम लगता है। अब यही बच्चे 14 से 15 साल के हो जाने पर, अपने माता-पिता के साथ खेतों में या अन्य जगह काम करने लग जाते हैं। थोड़े ही बड़े हो जाने पर, इन लोगों को इनकी स्थिति, काम में लगा देती है। इनके उम्र में अन्य जाति के लोग पढ़ाई-लिखाई और अपने दोस्तों के साथ खेलते रहते हैं। लेकिन, इन लोगों को, इनकी मजबूरी काम करना सीखा देती है।
तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, बैगा जनजाति के बच्चे गुड़ फैक्टरी के पास में खेल रहे हैं और साथ में इनके माता-पिता काम कर रहे हैं। जोकि, इस गुड़ फैक्टरी के गन्ने के खत्म हो जाने के बाद ही बंद होगा और उसके बाद अपने घर चले जाएंगे। जिससे, इनके बच्चो का पढ़ाई-लिखाई चौपट हो जायेगा।
सुन्नीलाल बैगा, जो ग्राम मोवाला, जिला मंडला, मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि, “जो प्रति वर्ष काम करने के लिए, अपने पुरे परिवार के साथ, अपने गांव से दूर जाते रहते हैं। उनके बच्चे, पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। जब तक, बैगा लोगों को, उनके क्षेत्रों में रोजगार नहीं मिलेगा। तब तक, बैगा लोगों के बच्चों की पढ़ाई, खराब होते रहेगी और न ही उनके बच्चे, किसी अच्छे पद में जा पाएंगे। इस समस्या को, शासन को अनदेखा नहीं करना चाहिए। क्योंकि, इस समस्या से, बैगा लोगों की आर्थिक स्थिति में गिरावट हो रही है और बदलाव भी नहीं हो पा रहा है। इसलिए शासन को, बैगा जनजाति के लोगों को, उनके क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराना चाहिए और उनके प्रति ध्यान देना होगा कि, बैगा जनजाति के बच्चे भी अपने पैरो में खड़े हो पाए।”
जंगलों में रहने वाले आदिवासी बैगा जनजाति के बच्चे भी, अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। अपने घर के हालतों को देखते हुए, बच्चे आधी-अधूरी ही पढ़ाई कर पाते हैं। उसके बाद, अपना जीवन-यापन करने के लिए, काम पे जाने लग जाते हैं। और बैगा बच्चे, ज्यादातर कर उनके गांव के स्कूल में जितनी तक कक्षा रहती है, उतना ही पड़ पाते हैं और आगे की पढ़ाई करने के लिए, उन्हें दूसरे गांव जाना पड़ता है। तो, उसमें भी आधे से भी ज्यादा बच्चे, स्कूल जाना बंद कर देते हैं। एक गांव से, मुश्किल से एक या दो बच्चे ही दूसरे गांव पढ़ने जाते हैं। और आने-जाने की समस्या को देखते हुए, वो लोग अपना पढ़ाई छोड़ कर, आस-पास में काम करने लग जाते हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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