मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
वर्तमान में पृथ्वी पर जंगलों के हो रहे विनाश बहुत चिंताजनक हैं, जिससे प्रकृति और मानव सभ्यता दोनों को नुकसान हो रहा है। जंगलों को साफ करने या पहाड़ों में आग लगाने की वजह से पेड़ों की कटाई होती है। जिससे पृथ्वी के जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो रहा है। सबसे ज्यादा नुकसान पतझड़ के मौसम में आग लगने के बाद जंगलों और पहाड़ो में देखने को मिलता है। क्योंकि, इस समय जंगलों और पहाड़ों में मिलने वाली महुआ बिनाई के लिए, लोगों द्वारा जंगलों को साफ करने के लिए आग लगा दिया जाता है। जिससे जंगल तो साफ होता है। लेकिन, इसके साथ ही जंगलों को बचाने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। जैसे कि, जंगलों की रक्षा के लिए संगठित कार्यक्रम, वृक्षारोपण, जल संरक्षण और वातावरण संरक्षण के लिए सशक्त प्रबंधन योजनाएं आदि। इसके अलावा, हमें जंगलों के महत्व को समझना भी जरूरी है।
जिस प्रकार कोरबा जिला कोयला खनन और तापविद्युत के लिए जाना जाता है। वैसे ही यह क्षेत्र जंगलों और पहाड़ो के लिए बहुत प्रसिद्ध क्षेत्र है, जिसमें जंगली जानवरों के साथ-साथ, जंगलों में कुछ ऐसे पेड़ों के अपार भंडार हैं। जिसका उपयोग आमदनी और जड़ी-बूटी के लिए, जिले के आदिवासी सहित अन्य लोग भी करते हैं। पतझड़ शुरू होते ही सभी पेड़ों से पत्ते गिरने शुरू हो जाते हैं और महुआ भी इसी दौरान गिरते हैं। जिसको बीनने के लिए उस पेड़ के नीचे, जमीन में गिरे हुए पत्तों में आग लगा देते हैं। जिससे पूरे जंगलों में वृक्ष के नीचे गिरे पत्तों में भी आग फैल जाता है। तब आग बुझने का नाम नहीं लेता है। जिससे जंगलों में छोटे-छोटे पौधे तो जलते ही हैं, साथ ही बड़े पेड़ों को भी नुकसान पहुँचाते हैं, जिसमें कुछ इमारती लकड़ी और आदिवासियों को आमदनी पहुँचाने वाले पेड़ भी होते हैं।
मकान बनाने के लिए भी करते है जंगलों का सफाया
जनसंख्या वृद्धि आजकल बहुत तेजी से हो रही है। जिससे नए घरों की आवश्यकता बढ़ती जा रही है। और इस बढ़ोतरी के चलते, लोग जंगलों के कटाव का असर भी देख रहे हैं। जिससे पर्यावरण के संतुलन में बड़ी बाधा आ रही है। लोगों को नए मकान बनाने की आवश्यकता है। लेकिन, उन्हें अपने घरों की जरूरतों के लिए जंगलों के कटाव से बचाने के लिए, उन्हें विवेकपूर्ण तरीके से नए विकल्पों का अध्ययन करना चाहिए।
कुछ उदाहरण हैं जैसे कि, वास्तुकला के नए विकल्प, प्रदूषण और ऊर्जा उपयोग के मानकों के साथ मकान बनाने का प्रयास करना, समुदाय के साथ सहयोग करना और घरों को आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके सुदृढ़ बनाने के लिए पुराने घरों का उपयोग करना आदि। सरकार और समुदाय के सहयोग से, हम सामाजिक और पर्यावरणीय उत्थान को बरकरार रखते हुए सही समय पर सही नीतियाँ बनाकर जंगलों को कटाई से बचा सकते हैं। हम सभी को अपनी ज़िम्मेदारी लेनी होगी।
पशुओं के लिए चारे की कमी एक गंभीर समस्या है और इससे उनकी सेहत और पोषण पर असर पड़ता है। अगर, धान की कटाई के दौरान धान के बचे हुए पुआल का इस्तेमाल, पशुओं के लिए चारा तौर पर किया जाए, तो यह एक अच्छा समाधान हो सकता है। इसके अलावा, अन्य भी चारा स्त्रोत जैसे घास, साईलेज, फसल के बचे हुए अंश आदि का उपयोग करना चाहिए।
धान की मिसाई करते वक्त, थ्रेशर मशीन से निकलने वाले धान की पुआल को इकट्ठा किया जा सकता है और इसे पशुओं के लिए चारा बनाने में उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि, अधिक से अधिक बचे हुए पुआल को आग लगने वाली जगह से दूर ले जाए। ताकि, भविष्य के लिए इन स्त्रोतों को जलने से बचाया जा सके। अंत में, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि, पशुओं को पर्याप्त मात्रा में पोषण मिले अगर चारे की कमी होती है तो, अन्य वैकल्पिक चारा स्त्रोतों का उपयोग करना चाहिए।
ग्राम रतिजा के गणपत दास जी कहते हैं कि, पहले वे महुआ बीनने के लिए जंगलों में आग लगाते थे। लेकिन, अब लोग खेतों की सफाई के लिए खेतों में आग लगाते हैं। जिससे खेत में बचे धान के पौधे भी जल जाते हैं और गर्मी के समय पशुओं के लिए चारे की समस्या होती है। गर्मियों में हरे घास की कमी होती है। और अगर इसी तरह से जंगलों के सफाई का काम जारी रहा तो, लोगों को भविष्य में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए, लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाना चाहिए, ताकि लोग पेड़ों का दोहन कम कर सकें।
हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और जंगलों को बचाने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं। जैसे कि जंगलों की रक्षा के लिए संगठित कार्यक्रम, वृक्षारोपण, जल संरक्षण और वातावरण संरक्षण के लिए सशक्त प्रबंधन योजनाएं। इसके अलावा हमें जंगलों के महत्व को समझना भी जरूरी है। जंगल हमारी प्राकृतिक संसाधनों का एक महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं, जिनका संरक्षण हमें न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक रूप से भी फायदा पहुँचाता है। इसलिए, हम सभी को प्रकृति के प्रति संवेदनशील होकर जंगलों को संरक्षित रखने के लिए सहयोग करना चाहिए।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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