छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुख्य पेशा खेती किसानी रहा है। यहां पर सबसे ज्यादा धान की खेती की जाती है, और यही कारण है कि इस राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है।
भारत में कृषि करने के तरीकों में तेज़ी से बदलाव आ रही है। आधुनिक उपकरणों के आने से किसान अधिक लाभ हेतु अपने पारंपरिक तरीकों को त्याग रहे हैं। और इस वजह से कई सारी समस्या भी उत्पन्न हो रही है। उदहारणस्वरूप छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा ट्रैक्टर से खेती करने का नतीजा यह हुआ कि लोग दूध देने वाले जानवरों के अलावा सभी को खुले में छोड़ दिया जा रहा है अब यही जानवर किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गए हैं।
खेती का उपकरण विकसित होने से बैलों और लकड़ी के हल द्वारा खेती न करने के कई कारण हैं। बैलों द्वारा खेत को जोतने में किसान को अधिक परिश्रम करना पड़ता है और समय भी ज्यादा लगता है, वहीं आधुनिक उपकरण उपलब्ध होने से किसान को समय कम लग रहा है और दाम भी ज्यादा मिलने लगा है। आधुनिक उपकरणों के माध्यम से किसान को लंबे और बड़े खेतों पर काम करने में काफी सहूलियत हो रही है।
ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी किसान आज भी आधुनिक उपकरण उपलब्ध होने के बावजूद हल - बैल से खेती करने की परंपरा को जीवित रखे हुए हैं। लकड़ी के हल और बैलों से खेती करने के भी अनेक फायदे हैं, इसमें किसानों का शारीरिक श्रम होता है और बैलों का भी स्वास्थ्य ठीक रहता है, शारीरिक श्रम से किसान को कोई बड़ी बीमारी नहीं होती है और छोटे खेतों को बैलों से हल से करने में ज्यादा आसानी होती है। ऐसा ही एक किसान भुवनसिंह कोर्चे ने हमें बताया कि "हमारे गांव में ज्यादातर बैल से ही हल चलाया जाता है हमारे यहां में एक ऐसी मान्यता भी है कि गुरुवार के दिन हमारे गांव में बैल हल से जोताई नहीं की जाती है, न ही उस दिन खेत का कुछ भी काम किया जाता है उस दिन बैलों की पूजा की जाती है। "
ग्राम नवापारा में निवास करने वाले खेतीहर किसान 74 वर्षीय रामेश्वर गोस्वामी ने बताया कि "इस बढ़ती हुई आधुनिकीकरण से लोग ज्यादातर अब मशीनी उपकरणों के पीछे ज्यादा भाग रहे हैं, अब लोग परिश्रम करना नहीं चाहते इसीलिए लोग मशीन के द्वारा खेत की जुताई ट्रैक्टर से कर रहे हैं और जो हीरा मोती की जोड़ी है उसे विलुप्त कर रहे हैं। पुराने जमाने में लोग ज्यादातर खेती बैलों के द्वारा हल चलाकर खेतों की जुताई करते थे, बड़े बुजुर्गों का कहना है कि हमारे जमाने में बैलों से ही हल चलाकर खेत की जुताई की जाती थी। बैलों द्वारा हल चलाने से मिट्टी उपजाऊ रहती है मिट्टी में नमी आ जाती है और फसल भी अच्छी होती है। बैलों से खेत की जुताई करने में परिश्रम तो लगता था लेकिन शरीर फुर्तीला हो जाता था और इसमें लागत भी कम होती है लेकिन अब की बात की जाए तो आज लोग मशीनों के द्वारा खेतों की जुताई करवा रहे हैं जिससे मिट्टी पर बुरा प्रभाव हो रहा है। ट्रैक्टर की जो नोक रहती है, उसके कारण खेत गहरा हो जाता है और खेत दलदल भी हो जाता है जिसके वजह से फसल अच्छी तरह से नहीं हो पाता। इन सब बातों को जानते हुए भी लोग आजकल ट्रैक्टरों का ही ज्यादा उपयोग करते हैं ताकि समय का बचत हो सके।"
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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