इस वर्ष का 95वां अकैडमी अवार्ड्स समारोह (ऑस्कर्स), भारत के लोगों के लिए, कई मायनों में खास रहा। चूँकि, इस बार भारत की झोली में, दो अलग-अलग श्रेणी में, दो ऑस्कर आये हैं। ऑस्कर, हर साल अमेरिका के, लॉस एंजिल्स में आयोजित होता है। यह पुरस्कार, सिनेमा की दुनिया के लिए, बहुत प्रतिष्ठित है। यह पुरस्कार, उन लोगों को मिलता है, जो सिनेमा उद्योग में, उत्कृष्टता प्रदर्शित करते हैं। ऑस्कर का इतिहास सन 1929 में शुरू हुआ था। इसके बाद से, हर साल अलग-अलग कैटेगरी में, ये पुरस्कार दिए जाते हैं। इस वर्ष, भारत से नॉमिनेट हुए ‘नाटू-नाटू’ गाने ने बेस्ट ओरिजिनल सांग और ‘द एलीफैंट व्हिस्पेरेर्स’ ने बेस्ट डाक्यूमेंट्री शार्ट फिल्म का अवार्ड जीता है।
द एलीफेंट व्हिस्पेरर्स, कार्तिकी गोंसाल्विस द्वारा निर्देशित की गयी 39 मिनट की शार्ट डाक्यूमेंट्री फिल्म है। कार्तिकी ने, इस फिल्म को इसलिए बनाया, क्योंकि उन्हें रघु से प्यार हो गया था। और रघु, इस फिल्म के मुख्य किरदारों में से एक किरदार हैं। यदि, फिल्म की पटकथा की बात करें, तो ये फिल्म, मुख्य तौर पर चार किरदारों के इर्द-गिर्द गड़ी गयी है। कट्टुनायकन जनजाति के दो महावत, बोम्मन और बेल्ली, और दो हाथी बच्चे, रघु और अम्मू के बीच के रिश्ते को, बड़े परदे पर चित्रित करती है। बोम्मन और बेल्ली, तमिलनाडु के 'मदुमलाई टाइगर रिज़र्व' में, हाथियों के छोटे बच्चों को, व्यसक होने तक, देखभाल करने का काम करते हैं। वन विभाग द्वारा, बोम्मन और बेल्ली के पास, सबसे पहले, ‘रघु’ को जख्मी हालत में, देखभाल करने के लिए लाया गया था, जब रघु मात्र तीन माह का था।
गोंसाल्विस की रघु से मुलाकात तब हुई, जब वह एक बार ‘मुदुमलाई टाइगर रिजर्व’ से गाड़ी चलाकर घर जा रहीं थी, जो नीलगिरीस जिले में, थेप्पाकडू हाथी शिविर के पास स्थित है। नेशनल पब्लिक रेडियो को, साक्षात्कार देते हुए गोंसाल्वेस कहती हैं कि, “मैं, रघु से पहली बार तब मिली, जब मैं गाड़ी चलाकर घर जा रही थी। मैं उसकी चंचलता से हैरान थी। फिर बोम्मन से मुलाक़ात हुयी और उन्होंने मुझे दोबारा आने का न्योता दिया। मैंने पांच साल तक, रघु की कहानी का अनुसरण किया और लगभग 450 घंटे की फुटेज थी। वहाँ हजारों, रघु के नहाने के दृश्य हैं, उसके कितने ही घंटे भोजन करते या खेलते रहने के दृश्य हैं। लेकिन, आपको धैर्य रखने की जरूरत होती है। और आपको ऐसे दृश्य मिलते हैं, जहां बेल्ली, अम्मू को अपने बगल में बैठने के लिए कहती है। ये इंटीमेट मोमेंट्स हैं, जिनकी प्लानिंग नहीं की जा सकती।”
गोंसाल्विस ने इस फिल्म के माध्यम से, बहुत ही सुन्दर तरीके से लोगों को, करुणा और प्यार का बोध करवाया है। वह इस फिल्म में, इंसानों और जानवरों के बीच के, मधुर रिश्ते को दिखाने में कामयाब हुई हैं। जैसे रघु के मिलने पर, बेल्ली उसे अपने बच्चों की तरह पालती है। और रघु, बेल्ली को उसके मृत बच्चों की दुःखदायी पीड़ा से बहार निकालने में मदद करता है। रघु और अम्मू को लाड़-प्यार देते-देते, बोम्मन और बेल्ली को, एक दूसरे से प्रेम हो जाता है। और वे दोनों बुढ़ापे में, एक दूसरे का सहारा बनने के लिए, विवाह कर लेते हैं। यह फिल्म, आपको आपके आस-पास हो रही गतिविधियों पर, सोचने पर मजबूर करती है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात, यह फिल्म आपको प्यार की परिभाषा बताती है।
इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में, आदिवासी जीवन-शैली को दिखने का प्रयास किया गया है। और ऑस्कर मिलने के बाद, दोनों ही बोम्मन और बेल्ली को, काफी मान-सम्मान मिला। और यह खुद में, खास बात है। चूँकि, इस से पूर्व जब, “द जंगल सागा” को 60 के दशक में ऑस्कर मिला था। तब, छत्तीसगढ़ के मुरिया जनजाति के चेन्द्रू मांडवी को, दुनिया वालों ने उसके अभिनय और कहानी के लिए, सराह तो खूब था। लेकिन उसको, वो मान-सम्मान नहीं मिला, जिसका वो हक़दार था। और प्रख्यात टाइगर बॉय चेन्द्रू मांडवी जीवन के आखिरी पड़ाव में, गुमनामी के अँधेरे में, बीमारी का शिकार होकर, 78 वर्ष की आयु में, वर्ष 2013 को मृत्यु शैया पर दुनिया को अलविदा कहे गए।
इस फिल्म की शुरुआत में, बोम्मन कहता है कि, “मैं कट्टुनायकन हूँ, कट्टुनायकन का अर्थ 'जंगलों का राजा' होता है। यह (जंगल) मेरा घर है, जहाँ जंगली जानवर आजाद घूमते हैं। यह वही भूमि (मदुमलाई राष्ट्रीय अभ्यारण) है, जहाँ मेरे पूर्वज पीढ़ियों से निवास करते आये हैं।” और फिल्म के अंत में बोम्मन, समाज को आइना दिखाते हुए कहते हैं कि, “हम इंसानों के कुकृत्य की वजह से ही, आज के समय में, हाथी, गावों की ओर आते हैं। हमारी गलतियाँ, दोनों ही इंसानों और हाथियों के लिए काफी घातक है। मैं और बेल्ली, रघु और अम्मू को इसलिए बचा पाए। क्योंकि, उन दोनों को हमारे पास लाया गया था। लेकिन हम, सभी को नहीं बचा सकते।“
Comments