कई छात्रों के लिए, एक छात्रावास जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में कई छात्र हैं, जिन्हें घर पर पढ़ने के लिए सही वातावरण नहीं मिलता है। ऐसे छात्रों के लिए, एक छात्रावास उन्हें अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्थान और वातावरण प्रदान करता है। कई राज्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों को ऐसे छात्रावास प्रदान करते हैं। लेकिन, कोविद 19 लॉकडाउन के कारण, ऐसे हॉस्टल बंद कर दिए गए हैं और छात्रों को मजबूरन अपने गाँव वापस जाना पड़ गया है। ऐसी स्थिति में, छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी छात्रों को ठीक से अध्ययन करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। हमारे जिला गरियाबंद मैं ऐसे बहुत सारे बच्चे हैं जो घर वापस आ गए हैं।
कोरोना वायरस ने एक बार फिर एक बड़ी समस्या का रूप धारण कर लिया है। बड़े और छोटे शहरों में लाखों लोग बीमार पड़ रहे हैं। इस "सेकंड वेव" के कारण आज पूरी दुनिया खतरे में है । कोरोना वायरस को रोकने के लिए देश के बहुत सारे राज्यों में लॉकडाउन लगाया जा रहा है, जिससे शिक्षा पर बड़ा असर पड़ा है। प्राथमिक हो या माध्यमिक या उच्च शिक्षा, छात्रों के पठन पूरी तरह से प्रभावित है। कुछ बड़े संस्थान जैसे आई आई टी आई आर एम आदि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली कर अपने छात्रों को सहयोग करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन ( यूनेस्को) ने रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार कोरोना महामारी में भारत में 2020 में लगभग 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है, जिसमें 15.81 करोड़ लड़कियां और 16. 23 करोड़ लड़के शामिल है। अध्ययन में पाया गया है कि आदिवासी बच्चे पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है जो पिछले लॉकडाउन के कारण अपनी पढ़ाई से वंचित रह गए।
महामारी के चलते स्कूल कॉलेज लगभग 1 साल से बंद हैं जिससे आदिवासी बच्चों में पढ़ने की इच्छा कम हो रही है क्योंकि उनके गांव में वह माहौल नहीं मिल पाता जिससे वह घर में रहकर पढ़ाई कर सकें। जो भी आदिवासी बच्चे गांव से दूर शहरों में पढ़ाई करते थे, वे अपने गांव में रुके हुए हैं और इस तरह धीरे-धीरे उनकी पढ़ने की इच्छा कम हो रही है।
आदिवासी बच्चे छात्रावास से वंचित
आदिवासी क्षेत्रों के बच्चे अपने क्षेत्र में स्कूल-कॉलेज की कमी के कारण अपने गांव से दूर शहरों में पढ़ाई करते हैं जिसके लिए सरकार द्वारा कई योजनाओं के तहत उनको हॉस्टल मिल जाता है। वह हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करते हैं और साल में कभी-कभी ही अपने गांव आते हैं। लेकिन इस लॉकडाउन के चलते उनका छात्रावास भी बंद है जिसके कारण उन्हें अपने गांव में ही रहना पड़ रहा है और उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है। चंद्रशेखर मरकाम , BA के द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। 2020 में वे छात्रावास में रहके पढाई करते थे। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पहले वर्ष के दौरान किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। उन्होंने अपनी परीक्षा दी और इसे पास कर लिया। लेकिन पिछले साल जब वे दूसरी क्लास में पहुंचे तो तालाबंदी शुरू हो गया और उनको अपने गाँव वापस आना पड़ा। "हमें ऑनलाइन क्लासेस हमारे कॉलेज द्वारा दिया गया लेकिन मेरे गांव में नेटवर्क नहीं होने के कारण मैं ऑनलाइन क्लासेस में सिर्फ सर मैडम की आवाज़ बस सुन पाता था, उनका वीडियो नहीं देख पाता था इसलिए मुझे पढ़ाई में बहुत दिक्कत हो रही थी।ऑनलाइन पीडीएफ से हमें कुछ जानकारियां भेजनी थी अपने यूनिवर्सिटी को लेकिन मुझे पीडीएफ की जानकारी नहीं थी।"
कई आदिवासी बच्चों के गांव में बिजली भी कम रहती है और दिन में उन्हें घर के कामों में सहयोग देना पड़ता है इसलिए पढ़ने का समय नहीं मिल पाता है, रात में अंधेरे के कारण लोग पढ़ाई नहीं कर पाते हैं। हमेशा हॉस्टल के शांत माहौल में पढ़ने वाले बच्चे आज अपने गांव में अपनी पढ़ाई को छोड़ने तक का फैसला कर लेते हैं। अर्जुन नेटी (12वी गणित) अपने गांव से 60 किलोमीटर दूर एक छात्रावास में रहा करते थे और वही से अपनी स्कूल की पढ़ाई करते थे। उनको उनके छात्रावास में पढ़ने के लिए बहुत अच्छा माहौल मिलता था। पिछले बरस तालाबंदी के बाद उनको छात्रावास छोड़ना पड़ा। तबसे आज तक, छात्रावास और स्कूल दोनों बंद है। स्कूल से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है जिसमें उन्हें अपनी स्कूल से अपने विषय की जानकारी मिलती रहती है। अर्जुन ने अपना दुख बयान करते हुआ कहा, "हम लोगों को स्कूल द्वारा ऑनलाइन पीडीएफ भेज दिया जाता है जिससे हम लोग अपनी प्रैक्टिकल और असाइनमेंट की तैयारी करते हैं । घर में पढ़ने का माहौल नहीं मिल पाता है ,दिन में बहुत सारे काम रहते हैं तो मुझे घर के काम भी करने पड़ते हैं ,इसलिए पढ़ाई में मन नहीं लग पाता है । अगले महीने मई में मेरा पेपर है लेकिन अभी तक मैं अपनी परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाया हूं ।इस लॉकडाउन से मेरे पढ़ने लिखने का आत्मविश्वास बहुत टूट गया है।"
आदिवासी बच्चे किसान मजदूर के बच्चे होते हैं जिन्हें दिन में बहुत सारे काम करने पड़ते हैं और घर भी छोटा छोटा होता है। उन्हें पढ़ने के लिए एक कमरा भी नहीं मिल पाता। यह सब दिक्कतों के कारण वह लोग हॉस्टल में रहते हैं लेकिन लॉकडाउन हो जाने के कारण सरकार द्वारा छात्रावासों को भी बंद कर दिया गया है जिससे आदिवासी बच्चे अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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