मनोज कुजूर द्वारा सम्पादित
केंद्र सरकार ने महिलाओं की रसोई की समस्याओं को देखते हुए, उनकी इस समस्या को दूर करने के उद्देश्य से "प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना" नामक एक योजना तैयार की है। इस योजना का प्रारंभ लगभग 6 साल पहले किया गया था। इसका दूसरा उद्देश्य था कि इस योजना के माध्यम से इंडेन गैस (गैस के साथ चूल्हा सेट) का वितरण करके, जितना हो सके जंगलों की कटाई दर कम की जाए। यह योजना काफी अच्छी है, परंतु इसका लाभ केवल कुछ लोग ही पा रहे हैं और कुछ लोग विभिन्न समस्याओं के कारण नहीं ले पा रहे हैं। इसकी मुख्य समस्या का कारण बढ़ती हुई महंगाई और आर्थिक कमी है।
हमारे ग्रामीण क्षेत्र के गांव में रहने वाली सभी आदिवासी महिलाएं अपने परिवार के पोषण के लिए खाना बनाती हैं और खाना को बनाने के लिए कितनी मेहनत और परेशानियों का सामना करना पड़ता है, यह किसी को नहीं पता। खाना बनाना कहने से आसान लगता है, परंतु उसे बनाना बहुत कठिन होता है।
आज हम अपने क्षेत्र के नजदीकी दो पंचायत, छुरी खुर्द और बांझीबन के अंतर्गत आश्रित ग्राम झोरा और सिरकी कला गए थे, जहां हमने श्रीमती सरस्वती कंवर और शीतला कंवर से मिले।
नवरतन बाई, कंचन बाई, टिकैटिन बाई, बुध्वारो बाई, स्यामबती कंवर और राधा बाई कंवर जैसे कई लोग इसका लाभ ले रहे हैं। उन्होंने हमें बताया कि केंद्र सरकार की तरफ से इंडेन गैस (गैस के साथ चूल्हा सेट) मिल गयी है और इसका उपयोग करने से उन्हें बहुत अच्छा लगा। हालांकि, जब उन्होंने 1 से 2 महीने तक इस इंडेन गैस का उपयोग किया, तो गैस खत्म हो गई। जब वे दोबारा गैस भरवाने गए, तो उन्हें गैस भराने के लिए एक हजार से अधिक रुपये चुकाने पड़े। ऐसा दो से तीन बार हुआ क्योंकि दो-तीन महीने बाद गैस की कीमत बढ़नी शुरू हो गई। अब गैस की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके कारण उनके पास पूरे साल भर गैस भरवाने के लिए पैसा नहीं है।
इसलिए वे इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और परिवार चलाने के लिए बहुत सारे पैसे की जरूरत होती है। कभी-कभी उनकी अचानक तबीयत खराब हो जाती है, तब पैसों की जरूरत पड़ती है, और उनके पास पर्याप्त पैसा उपलब्ध नहीं होता। गैस खत्म हो जाने पर उनके परिवार के लिए भोजन पकाने के लिए सुखी लकड़ी और गोबर की आवश्यकता होती है। लेकिन गांव में पर्याप्त गोबर नहीं है। गांव में यह समस्या है कि जनसंख्या अधिक होने के कारण गोबर की व्यवस्था नहीं हो पाती है और कंडा भी कम बनता है। इसके साथ ही अपने गांव के आस-पास सूखी लकड़ी नहीं मिल पाती है। सुखी लकड़ी के लिए गांव से काफी दूर जंगल में जाना पड़ता है।
जंगल में जाने से उनको कई तरह का खतरा बना रहता है। जंगल में कई तरह के वन्य जीव वास करते हैं जो काफी खतरनाक होते हैं, जैसे शेर, भालू, सांप, बिच्छू आदि। इससे उनकी जान को खतरा होता है। इस परिस्थिति में भोजन पकाने के लिए कांडा और जलाने के लिए लकड़ी की व्यवस्था कर पाना बहुत मुश्किल होती है। यदि इन चीजों की व्यवस्था हो भी जाए, तो भी आजकल बरसात के दिन गोबर गीला रहता है और सूखी लकड़ी पानी से गीली हो जाती है। खाना पकाने के लिए इन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ती है और जब वे इकट्ठा की हुई लकड़ी और कांडा से खाना पकाती हैं, तो लकड़ी और कांडा से अधिक धुआं निकलती है और यह धुआं, उनकी श्वास नलिका (trachea) या साँस की नली के माध्यम से फेफड़ों में चला जाता है जो उनके स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक होता है। इसके कारण लोग भारी बीमार पड़ते हैं और उनके इलाज के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वह अपना इलाज अच्छे करा सके। इस तरह सभी आदिवासी महिलाएं बहुत सारी परेशानियों का सामना करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन अब उनकी दयनीय स्थिति को देखते हुए सरकार को उनकी ओर ध्यान देना चाहिए।
उनका मानना है कि अब इसकी बढ़ती हुई महंगाई देखकर सभी लोग इस गैस का उपयोग करने के लिए कतरा रहे हैं। उनको लगता है कि जंगल में भले खतरा हो, लेकिन गैस की बढ़ती दाम के अपेक्षा महंगा नहीं है और लकड़ी के लिए पैसों की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे उनकी थोड़े पैसों की बचत हो जाती है। गैस की महंगाई के साथ अन्य सभी चीजों की महंगाई से लोग परेशान हैं। महंगाई से तंग आकर लोग लकड़ी का उपयोग करना पसंद कर रहे हैं।
इस योजना का लाभ आधे लोग से भी कम ले रहे हैं। सभी आदिवासी महिलाएं अपनी जान को जोखिम में डालती हैं और काफी मेहनत करके भोजन बनाती हैं, परंतु प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत से कुछ महिलाओं को थोड़ी राहत मिली है। यह योजना उनके लिए है जिनकी आर्थिक स्थिति थोड़ी अच्छी है एवं जिनके पास आय के साधन हैं। इस योजना के माध्यम से, इन दोनों ग्राम पंचायतों में जनसंख्या के मुकाबले बहुत कम इंडेन गैस चूल्हा उपलब्ध है, लेकिन जिनके पास आय के साधन नहीं हैं, वे इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे हैं क्योंकि उनके पास पैसों की कमी है। इंडेन गैस के मूल्य बढ़ता जा रहा है और बढ़ते दामों को देखकर कई लोग इसे नहीं खरीद रहे हैं। हालांकि, शुरुआत में गरीब परिवारों में मुख्य महिला को एलपीजी गैस और गैस चूल्हा मुफ्त (200 रुपये शुल्क के साथ) प्रदान किया जा रहा है। लॉक डाउन के दौरान एलपीजी गैस भराने के लिये, लोगो को उनके खाते में पैसा डाल दिया था। लेकिन अब गैस उपभगताओ के खाते में गैस डलवाने के लिये पैसे नही जमा हो रहे हैं।
यदि लोगों की स्थिति ऐसे ही बनी रही है, तो जंगलों की कटाई दर कम नहीं होगी। लोग अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जंगलों की कटाई करेंगे, जिससे हमें और हमारे पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकती है। जंगलों को सुरक्षित न रखने से, हमें भविष्य में भयानक संकटों का सामना करना पड़ सकता है।
नोट: यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, जिसमें ‘प्रयोग समाजसेवी संस्था’ और ‘Misereor’ का सहयोग है।
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