लेखक- राजकुमार मरकाम
किसी के घर में बच्चा पैदा होना बहुत ही आनंद की बात होती है और लोग इस बात को धूम-धाम से मनाते है। ऐसे ही हमारे छत्तीसगढ़ के आदिवासी गाँव में बच्चें पैदा होने पर उत्सव मनाया जाता है और यहाँ कई अनोखे रीति-रिवाज है जो आदिवासी सालों से पालते आ रहे है।
ऐसे मनाते है छट्टी कार्यक्रम
बच्चें पैदा होने के 10 से 15 दिनों में छट्टी कार्यक्रम मनाया जाता है। बच्चे के लिए कम्पयूटर से नामकरण पत्र कार्ड छपवाया जाता है और माँ-बाप अपने रिश्तेदार, परिवार और गाँव वालों को भी कार्ड देते हैं, ताकि सभी लोग बच्चें को आशीर्वाद दें। जब घर में नया बच्चा पैदा होता है, तब लड़की होने पर 2 बार पटाखे फोड़ते हैं और लड़का हुआ तो 3 बार फोड़ते हैं। इससे लोगों को संकेत मिलता हैं कि उस घर में लड़का पैदा हुआ है या लड़की पैदा हुई है।
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श्री रामचरण सोरी, गाँव के बैगा
श्री रामचरण सोरी, जिनकी उमर 50 वर्ष की है, हमारे गाँव के बैगा हैं।छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी गाँव में गाँव के एक बैगा होते है।किसी के घर में अगर कुछ काम हो, तो बैगा को पहले बुलाते हैं और बैगा घर आकर पूजा करते हैं। घर में बच्चा पैदा होने पर भी बैगा को सूचना दी जाती है और वह घर आकर पूजा करते है।
छट्टी कार्यक्रम में लोग रामायण का नाटक प्रस्तुत करते है, या नाच- गाने का कार्यक्रम होता हैं। जब छट्टी कार्यक्रम का टिकावन होता है, उस कमरे में किसी भी पुरुष को अंदर जाने की इजाज़त नहीं होती। उस कमरे में सिर्फ महिलाओं, माताओं और बहनों की बैठक होती है। वह एक पतल में हल्दी और सरसों का तेल लेते है और इसका मिश्रण करके नए बच्चे की माँ के सिर पर थोड़ा तेल लगाते हैं।
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एक कलश पर दिया जलाया जाता है और नामकरण किया जाता है। बच्चे का नाम बुआ द्वारा ही दिया जाता है और बच्चे को उसी नाम से पुकारा जाता हैं। टिकावन के बाद उस बच्चे को और उसकी माँ को मेहमान पैसे देते हैं। कोई 50 रूपए देते हैं तो कोई 100 रूपए- इच्छा नुसार पैसों की या कपड़ों की भेंट दी जाती है। भेंट के साथ साथ हर कोई दुआ भी देते है, कि भगवान कि कृपा बच्चे पर और उसके परिवार पर बनी रहे। उसके बाद चावल को ज़मीन पर बिखर देते हैं और उसके उपर नए कपड़े रखे जाते है और बच्चे को कपड़ों पर रखते है।
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इस बच्चे का छट्टी कार्यक्रम में “शिवा” नाम रखा गया
जब तक बच्चा और उसकी माँ छट्टी कार्यक्रम नहीं मनाते, उन्हें रसोई घर और देवी देवता के घर में जाने की अनुमति नहीं होती। छट्टी कार्यक्रम होते हीं माँ को खाना पकाने की अनुमति मिल जाती है। अगर बिना यह कार्यक्रम मनाए कोई माँ रसोई में खाना पकाती है, तो इसका कड़ा दंड मिलता है।
ऐसे मनाते है मेरे गाँव के कमार आदिवासी नए बच्चे पैदा होने का जल्लोश। छत्तीसगढ़ में कई आदिवासी गाँव है, और सबकी प्रथाएँ अलग अलग होती है। कोरोना के चलते ऐसे कार्यक्रम बंद हो गए है, क्योंकि लोगों को इकट्ठा होने की इजाज़त नहीं है। ऐसे समय में लोग अपने अपने घरों में ही ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर रहे है और उत्साह माना रहे है।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
लेखक के बारे में- राजकुमार मरकाम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का निवासी है। उसे खेती किसानी करना पसंद है। वह कहता है,“मुझे Adivasi Lives Matter के साथ काम करना भी अच्छा लगता है, और में ये काम और खेती दोनों आगे भी करते रहूँगा।”
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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