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छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में मशहूर है यह डंडा नाच

Varsha Pulast

नृत्य का आदिवासी संस्कृति में अहम भाग है। नृत्य और संगीत के ज़रिये आदिवासी अपने जीवन की कहानियां और अपनी खुशियां व्यक्त करते हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदायों में नाना प्रकार के नृत्य हैं, जिनमें से एक है डंडा नाच।


इस नृत्य में आदिवासी अपनी भाषाओं में गाने गाते हैं और डंडा पकड़कर नाचते हैं। डंडे को ऊपर उठाकर संगीत के ताल पर नाचते हैं। जब किसी के घर में शादी होती है, तो डंडा नाच का कार्यक्रम रखा जाता है।


पुराने ज़माने में डंडा नाच करते समय किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं होता था, लोग सिर्फ लकड़ी का प्रयोग करते थे लेकिन आज कल लोग वाद्य यंत्र बजाकर डंडा नाच करते हैं। ढोल, मंजीरा और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्र के संगीत पर लोग खुशी से नाचते हैं।

डंडा नाच करते हुए आदिवासी


इस डंडा नाच में लोगों का अलग पहनावा होता है। इसमें कमर पर या पैरों पर घुंगरू बांधे जाते हैं और गाने के हिसाब से नृत्यकार घुंगरू बजाते हैं। कलगी मयूर पंख या फूलों से बनाई होती है। नृत्यकार पगड़ी भी पहनते हैं। डंडा नाच का नृत्य, घुंगरू, वेशभूषा और इसका संगीत सुनने और देखने में बड़ा प्रिय लगता है।

लोग घर-घर जाकर डंडा नाच प्रस्तुत करते हैं और घर के लोग उन्हें धान, पैसा और चावल देते हैं। यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की मुख्य परम्पराओं में से एक है। दुर्भाग्यवश हमारी भाषा, गीत और नृत्य धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं, साथ ही साथ हमारी परम्परा भी नष्ट होते जा रही है। आदिवासियों के रहन-सहन, बोल-चाल और पोशाक में बदलाव आते जा रहे हैं। हमें अपनी संस्कृति को बचाए रखना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि अगर यह संस्कृति लुप्त हो गई, तो इसे वापस लाना नामुमकिन है।



लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

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