भोर होते ही पक्षियों का चहचहाना, पशु गय, बछड़ों का रंभाना प्रारंभ हो जाता है। अंधेरा दूर होते ही यह सब अपनी पेट- पूजा करने के लिए निकल पड़ते हैं। पशु-पक्षी तथा अन्य जीव-प्राणी केवल अपने पेट की तृष्णा मिटाने के लिए संघर्ष करते हैं मगर मनुष्य रोटी, कपड़ा, मकान और खुद के स्वाभिमान के लिए अपने जीवन भर प्रयत्न करते रहता है।
बेरोज़गारी भारत की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। आज पढ़े-लिखे, डिग्री रखने वाले युवा भी नौकरी ढूंड़-ढूड़कर त्रस्त हैं। पिछले साल की इस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का बेरोज़गारी दर 45 सालों में सबसे ज़्यादा था।
इस बेरोज़गारी के कारण गाँव के पढ़े-लिखे युवा भी जो काम मिलें, वो कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में जब पढ़े-लिखे लोगों को भी नौकरी नहीं मिल रही है, तो आखिर वे क्या करेंगे? कोई और उपाय ना होने के कारण कोरबा ज़िले के पंडरीपानी गाँव में लोग दूसरों की मवेशियों को चराकर अपना जीवन-यापन करते हैं।
एक मवेशी चरवाहे का जीवन संघर्ष रूपी होता है। वे प्रतिदिन सुदूर वनांचल क्षेत्रों में ऊंचे-ऊंचे पर्वत, घने जंगल और पथरीले कांटेदार पथ का सामना करते हैं। इन पर्वतों के घने जंगलों में, शहरों से दूर आदिवासी निवास करते हैं। इन लोगों का जीवन पहले भी संर्घषपूर्ण था और आज भी है।
इन वनांचल क्षेत्रों के गाँवों में रहने वाले लोग उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते हैं और इस विवशता के कारण वे आधुनिक दुनिया से दूर हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में मवेशी चरवाहा भोर होते ही गाय, बैल-बछड़ों, बकरी, इत्यादि पशुओं को लेकर अपनी रोज़ी-रोटी तथा मवेशियों के उत्तम चारागाह के लिए निकल पड़ते हैं। भयानक और कंटीले-पथरीले पर्वत के घने जंगलों में मवेशी चरवाहा आनंद और दुख एक साथ अनुभव करता हैं।
दुर्भाग्यवश यह मायने नहीं रखता कि इनकी योग्यता क्या है और कोई उपाय ना होने के कारण ये लोग यह काम करने के लिए विवश हैं। आज के दौर में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है ताकि लोग अपने पैरों पर खड़े हो सकें और अपने जीवन खुद सुधार सकें। सरकार को गाँव के युवाओं की शिक्षा और रोज़गार पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि वे भारत के भविष्य हैं।
लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। वो खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिल जुलकर रहना पसंद है और वो लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। उन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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