गॉंवों एवं जंगलों में ऐसे बहुत से पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो औषधि के रूप में काम आते हैं। इन पौधों की जानकारी सबसे ज़्यादा जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को होती है। ये हर एक पेड़ को पहचान सकते हैं और बता सकते हैं कि कौन से पौधे का किस रोग के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
श्यामा बाई पन्डो।
ग्राम चन्दनपुर की निवासी 80 वर्षीय श्यामा बाई पन्डो बताती हैं,
ब्लॉक पोड़ी उपरोड़ा के कई गॉंवों में बहुत औषधि पेड़-पौधे पाए जाते हैं।
वह हमें तीन औषधिय पौधों, गुड़हल, रक्तकोइलार और पथरच्चटा के बारे में बताती हैं।
पेट दर्द के लिए मददगार गुड़हल
गुड़हल।
गुड़हल के चमकदार लाल रंग के फूल, इसे घरों के लिए सुन्दर सजावटी पौधे बनाते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम हिबिस्कुस रोसा-सिनेसिस है। लोग इसे स्थानीय भाषा में मदार भी कहते हैं। यह पेट के दर्द के लिए मददगार होता है। गुड़हल या मदार फूल को बारीक पीसा जाता है। उसके रस को निचोड़कर अलग कर लिया जाता है और फिर छाना जाता है। उसके रस को पीने से पेट दर्द केवल 10 मिनट में खत्म हो जाता है।
चोट के दर्द में मददगार रक्तकोइलार
श्यामा बाई दूसरे औषधि रक्तकोइलार के बारे में बताती हैं। यह जंगलों में पाए जाते हैं। इसे रक्तकोइलार इसलिए कहते हैं, क्योंकि इसके छाल को जब पीसा जाता है, तो इसका रंग खून के समान लाल होता है। किसी कारण से सीने में चोट लग जाए, तो रक्तकोइलार के रस को पीने की सलाह दी जाती है। जो पिसी हुई छाल बच जाती है, उसे चोट लगी हुई जगह पर लगाया जाता है। इस दवाई का उपयोग एक सप्ताह तक सुबह-शाम करने की राय दी जाती है। इसके प्रयोग से सीने का दर्द कम होता है।
पथरी की बीमारी के लिए दवा है पथरचट्टा
एक और अनोखा पौधा है, जिसे जाना जाता है पथरचट्टा के नाम से। इसे घरों में लगाया जाता है। इस पौधे को पथरचट्टा इसलिए कहते हैं क्योंकि इसके पत्तों को अगर पत्थर पर फेंक दिया जाए, तो वह पत्थर में ही उगकर नए पौधे को जन्म देती है। इसका उपयोग पथरी बीमारी के लिए किया जाता है। पथरचट्टा की पत्तियों को पीसकर गुड़ में मिलाकर खाते हैं। इसका उपयोग एक से दो महीने तक करने की सलाह दी जाती है।
पेड़ पौधे वातावरण के लिए उपयोगी तो हैं ही, साथ-ही-साथ कुछ पौधों में औषधि गुण भी होते हैं। जंगलों और उसके आसपास रहने वाले लोगों को इसकी बखूबी पहचान होती है। वे इन पौधे के जड़, छाल या पत्तियों का प्रयोग करते हैं। इन पौधों को अधिक-से-अधिक लगाने चाहिए और उपयोग भी करना चाहिए। इनकी चिकित्सक उपयोगिता इन्हें आदिवासियों का खज़ाना बनाती है।
यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था
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