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पूर्वजों के सम्मान में छत्तीसगढ़ के आदिवासी कैसे मनाते हैं पितृ मोक्ष

आदिवासी अपने पूर्वजों से मज़बूती से जुड़े रहते हैं। इस संबंध को याद करते हुए और पूर्वजों के सम्मान में हर सितंबर को आदिवासी पितृ मोक्ष की रीति पालते हैं। जिनकी मृत्यु हुई हो, उनके लिए यह कार्यक्रम रखा जाता है।


पितृ मोक्ष हमारे पूर्वजों का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। पितृ मोक्ष के बारे मे जानने के लिए हमने सोनपुरीपारा के निवासी त्रिभुवन सिंह से बात की। अपने 45 साल के अनुभव से उन्होंने हमें बताया कि कोरबा में ऐसे कई गाँव हैं, जहां पितृ मोक्ष मनाया जाता है।


कैसे होता है पितृ मोक्ष का कार्यक्रम?

छुही मिट्टी।


इस दिन पूरे घर की साफ-सफाई की जाती है, छुही मिट्टी से पूरे घर को लिपा जाता है और घर को सजाया जाता है। चावल को चिकना पिस लेते हैं, जिसे पिसान कहते है और उस पिसान से कई प्रकार के चौक बनाते है।

उसमे कई प्रकार के फूलों को रखा जाता है। एक प्रथा है जहां जल अर्पित किया जाता है लेकिन इसका नियम है कि सिर्फ लड़के ही जल अर्पित कर सकते हैं।

कुसा।


बगई का बनी एक अंगुठी होती है, जिसे कुसा कहते हैं और इसे उंगली मे पहनते हैं। कुसा बगई पेड़ से निकाली गई रस्सी होती है, जिससे खाट भी गुथा जाता है। यह कार्यक्रम चौदह दिन तक मनाया जाता है और इस दौरान लोग नदी मे नहाने जाते हैं।


उड़द दल और चावल को मिलाया जाता है और इसमें काले रंग की उड़द दाल का ही उपयोग करते हैं। नदी मे उड़द दाल और चावल को तोराई पत्ते मे रखकर जल मे अर्पित करते हैं।

सातवें दिन पर तोराई की सब्ज़ी बनाते हैं। लोगों का मानना है कि तोराई सब्ज़ी से प्रसन्नता मिलती है। चौदहवें दिन मन पसंद पकवान बनाया जाता है। जिनकी मृत्यु हुई है, उनके नाम से नदी में इसे प्रवाहित कर देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि घर-परिवार मे सभी खुश और सुरक्षित रहें।


यह पितृ मोक्ष का कार्यक्रम आदिवासियों का उनके पूर्वजों के प्रति सम्मान को दर्शाता है। क्या आपके समुदाय में भी ऐसी कोई प्रथा है?



लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। वह स्टूडेंट हैं और पेड़-पौधों की जानकारी रखना और उनके बारे में सिखना पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

 
 
 

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