top of page
Varsha Pulast

सिर्फ़ महिलाएँ ही गाती है यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध सुआ गीत

आदिवासियों के गीत उनकी संस्कृति का बड़ा महत्वपूर्ण भाग होते है। गीतों के ज़ारिए आदिवासियों के जीवन की कहानियाँ, किससे और सिख बतायी जाती है। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के कई लोक गीत है, जो अलग अलग त्योहारों और अवसरों में गाए जाते है। इन गीतों में से एक है सुआ गीत, जो छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकगीत और लोकप्रिय गीतों में से एक माना जाता है।


यह गीत महिलाओं द्वारा गया जाता है और इसके साथ साथ नृत्य भी होता है। सुआ गीत, जिसे वियोग गीत भी कहते है, सबसे के पहले तब शुरू हुआ जब सुआ के माध्यम से नारीयों के संदेश गीत के रूप में गाए जाने लगे। सुआ के द्वारा स्त्री अपने मन की बात बताती हैं। बुजुर्गों का मानना है कि पुराने दिनों में महिलाएँ अपने मन की बात तोते से कहती हैं और तोता सुनी हुई बात को दोहराता था, इसलिए यह अपनी व्यथा को गीत के माध्यम से व्यक्त करने लगी। सुआ का मतलब ही होता है “तोता”। यह गीत कई साल पुराने है और पीढ़ी तार पीढ़ी महिलाएँ इन गीतों को गाते आ रही है। इस सुआ गीत में कई चीजों का व्याख्यान होता है, जैसे फल-फूलों के बारे में, किसानी के बारे में, दुःख-सुख के बारे में; इसमें विरह का भी ज्ञान होता है।

सुआ गीत गाते समय दो लाइनें बनाकर महिलाएं एक दूसरे के सामने खड़ी होती है और ताली बजाते हुए यह गीत गाती है। पहले एक महिला गीत गायन करती है, और दूसरी महिलाएँ ताली बजाकर उस गीत को दोहराती है। सुआ गीत मौलिक रूप से गोंड आदिवासियों का प्रमुख गीत हुआ करता है, जिसे सिर्फ़ गोंडी महिलाएँ गाती और नृत्य करती थी, लेकिन आजकल सभी समुदाय की महिलाएँ इस गीत को गाती हैं।


सुआ गीत में छत्तीसगढ़ के परंपराओं एंड संस्कृति की झलक है। सुआ गीत के अलावा छत्तीसगढ़ में करमा और ददरिया जैसे लोक गीत भी मशहूर है।


सुआ गीत के गाने की शुरूवात दीपावली के गौरी-गौरा के पुजा होती है और इसे दिसम्बर से जनवरी तक के महीनों में गाया जाता है। सुआ गीत सामूहिक गीत होता है और महिलाएँ सभी के घर मे सुआ नृत्य करने जाती हैं। महिलाएँ मिट्टी की सुआ चिड़िया बनाते हैं और सुआ नृत्य करते समय मिट्टी के बनाए इस सुआ चिड़िया को एक टोकरी मे रखते है, उसके साथ चावल रखते है और टोकरी मे रखे सुआ चिड़िया के चारों तरफ घुम-घुमकर नाचते है।कभी कभी सुआ को महिलाएँ अपने सीर पर उठाकर भी नृत्य करती हैं।


सुआ गीत या नृत्य खत्म होने के बाद चावल या धान देकर महिलाओं को विदा करते हैं। सुआ गीत में किसी भी तरह के वाद्य यंत्र या बाजे की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ़ ताली बजाकर भी यह गीत सुनने में बाधा मधुर होता हैं। इस गीत को गाने के लिए व्यस्क से लेकर किशोरीयों तक सभी महिलाएँ उत्सुक रहती हैं। इस गीत को सिर्फ़ महिलाएँ ही गा सकती है।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।


यह लेख पहली बार यूथ की आवाज़ पर प्रकाशित हुआ था

Comentários


bottom of page